पृष्ठ:प्राचीन पंडित और कवि.djvu/७५

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सुखदेव मिश्र ८७ मिश्रजी विधि-पूर्वक पूजा करने जाते है उसी समय, पद मिश्रजी के पास आकर उपस्थित श्रा। प्रेमे दुसमय में भगवंतराय को आया देख मुम्पटेयनी के चेहरे पर मोध, श्रारचर्य और घृणा के चिर प्राधिभूत हो आये। पस्तु मगवंतराय को उन्होंने भासन दिया और थाने का कारण पूदा । उसने कहा कि पूजा के समय सिर्फ श्रापका पशी करने पाया है। इस समय पूजन की सामग्री के बीच पक पात्र में मय भोर पक पत्तल में माय मी ढका पुश्रा रा था। भगवंतराय के प्राने के समय मुगोवती पूजन में निमान थे, परंतु उससे पाने पर उन्होंने पूजा म्पगित Tr दी और उसकी तरफ ये मुनातिय दो गये। देर तफ और ीर याने फग्ने सनमर, भगया. रापन पदों पर रफ हुए मर पदाधी का नाम पदा और मुणदेयसी ने गपके नाम पतला शुभरिया। सपा मम पात्र और पतन की पारी आई। पेट । उनके विषय में भी जय जगनराय मानशियामपनि जना में और मी पनि माग | Hit नाम पाने में ही जग भी शायिनी frontrपा में राम में न TRE पापा को हुक्म fmir, इन दोनों का मन मोर TARIIRE माशा , मरिया में