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अष्टम सर्ग

हा! क्यो देखा मुदित उतना नन्द-तन्दांगना को ।
जो दोनो को दुखित इतना आज मैं देखता हूँ ।
वैसा फूला सुखित ब्रज क्यों म्लान है नित्य होता ।
हा! क्यों ऐसी दुखमय दशा देखने को बचा मैं ॥१८॥

या देखा था अनुपम सजे द्वार औं प्रांगण को ।
आवासों को विपणि सबको मार्ग को मंदिरो को ।
या रोते से विषम जडता मग्न से आज ए हैं ।
देखा जाता अटल जिनमे राज्य मालिन्य का है ॥१९॥

मैंने हो हो सुखित जिनको सज्जिता था विलोका ।
क्यो चे गायें अहह! दुख के सिंधु मे मज्जिता है ।
जो ग्वाले थे मुदित अति ही मग्न आमोद मे हो ।
हा! आहो से मधित अब मैं क्यों उन्हें देखता हूँ ॥२०॥

भोलीभाली बहु विध सजी वस्त्र आभूषणों से ।
गानेवाली मधुर स्वर मे सुन्दरी बालिकायें ।
जो प्राणी के परम गुद की मूर्तियाँ थी उन्हें क्यो ।
खिन्न दीना मलिन-बसना देखने को बचा में ।।२१।।

हा! पायों की मधुरध्वनि भी धूल में जा मिली क्या ।
हा! कीला है किन कुटिल न कामिनी-कराट प्यारा ।
सारी शोभा सकल प्रज की टूटता कौन क्यो ?।
हा! हा! मेरे हदय पर यो सोप क्यों लोटता है ।।२२।।

आगे आयो सहृदय जनो, युद्ध का संग छोडो ।
देखो बैठी सदन कहती क्या कई नारियाँ हैं ।
रोते रोते अधिकतर की लाल ऑखें हुई है ।
जो ऊंची हैं कथन पहले है उनीका सुनाता ॥२३॥