“जयति पतिप्रेमपनप्रानसीता ।
नेहनिधि रामपद प्रेमअवलम्बिनी सततसहवास पतिव्रत पुनीता"
——प० श्रीधर पाठक
“भृकुटी विकट मनोहर नासा"
“सोह नवल तन सुन्दर सारी"
“मोह नदी कहें सुन्दर तरनी"
“सकल परमगति के अधिकारी"
“पुनि देखी सुरसरी पुनीता"
“मम धामदा पुरी सुखरासी"
“नखनिर्गता सुरबन्दिता त्रयलोकपावन सुरसरी"
——महात्मा तुलसीदास
इस सवसम्मत प्रणाली पर दृष्टि रख कर ही इस ग्रन्थ में भी विशेषणों का प्रयोग उभय रीति से किया गया है।
हिन्दी-प्रणाली प्रस्तुत शब्द
कुछ शब्द इसमे ऐसे भी प्रयुक्त हुए है, जो सर्वथा हिन्दी प्रणाली पर निर्मित है। संस्कृत-व्याकरण का उनसे कुछ सम्बन्ध नहीं है। यदि उसकी पद्धति के अनुसार उनके रूपो की मीमांसा की जावेगी तो वे अशुद्ध पाये जावेगे, यद्यपि हिन्दी भाषा के नियम से वे शुद्ध हैं। ए शब्द मृगहगी, हगता इत्यादि हैं । मृगहगी का मृगहपी, धगता का धक्ता शुद्ध रूप है, परन्तु कवितागत
सौकर्य-सम्पादन के लिये उनका वही रूप रखा गया है। हिन्दी भाषा के गद्य-पद्य दोनो मे इसके उदाहरण मिलेगे, एक यहाँ पर दिया जाता है——
“ऐसी रुचिर-दृगी मृगियों के आगे शोभित भले प्रकार" ।
बाबू मैथिलीशरण गुप्त ( सरस्वती भाग ८ संख्या ६ पृष्ठ २४४)