पृष्ठ:प्रियप्रवास.djvu/७८

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प्रथम सर्ग

इस लिए रखना - जन - वृन्थ की ।
सरस - भाव समुत्सुकना पड़ी ।
प्रथम गौरव से करने लगी ।
ब्रज - बिनृषण की गुण मागिता ‌।‌।४६।‌।

जब दशा वह थी जन - वृन्द की ।
जलज लोचन थे तब के ।
सहित गोपन गोप समुह के ।
अवनि - योग्य गोकुल ग्राम में ।।४७।।

कुछ घड़ी वह शान्त करता हुई ।
फिर हुआ उसका अवलान भी ।
प्रथम थी वह दुम मची जान ।
जब वहां घटना सुनसान था ।।४८।।

कर विदुग्नि लोचन लालसा ।
स्वर प्रसिद्ध सुवा सूचि को मिला ।
गुण -गयी रसनेन्द्रय को बना ।
गृह गये अब दर्शक वृन्द भी ।।४९।।

प्रथम थी स्वर की लहरी जहाँ ‌।
पवन में अधिकाधिक गुंजती ।
अब वहाँ पर नीग्यता गई ।।५०।।

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