पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२६९

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अर्थ प्रिया-प्रकाश सुवरण - सोना। न विहित प्रमान है जिसका प्रमाण विहित नही है अर्थात् बे प्रमाण, वेहद। सजल =जल सहित । सहित = सप्रेम (श्रद्धा से)। (नोट) अंग और विक्रम के साथ भी 'स' का अन्वय लगाइये, जैसे सजल और सहित में है। अतः अंग = सांग और विक्रम- सविक्रम । सांग का हुआ सविधान ! सविक्रम = उत्साह सहित, वीरता पूर्वक । प्रसंग रंग =दान के प्रसंग में अनुरक्त होकर । कोषते प्रकाशमान - प्रत्यक्ष खजाने से निकाल कर। प्रतिभट - बराबरी बाला दाता। विलीन है जात हैं - लुप्त हो हो जाते हैं । दुनी-संसार। भावार्थ-(दान पक्ष में ) पहले तो प्रत्येक श्रेष्ठ ब्राह्मण को सोने से लदे हुए असंख्य बोड़े देते हैं ( तदनंतर अन्य दान पात्री को देते हैं) और दान कैसे देते हैं कि जल सहित (संकल्प बोला कर ) प्रेम सहित, सविधान और उत्साह पूर्वक दान प्रसंग पर प्रेम रखकर, प्रत्यक्ष खजाने से धन निकलवाकर और धैर्य पूर्वक । ब्राह्मणों को दान देकर तब दीनों पर दयाल होते हैं (दीन को देते हैं ) और इतना देते हैं कि बराबरी करने वाले दाता को शालता है, वह दान कीर्ति का प्रतिपालन करता है यह बात सारा संसार जानता है। रामचंद्रजी का ऐसा दान देखकर संसार के सव दान ( अन्य दानियों के दान.) लुप्त हो जाते हैं। श्रीरामजी का ऐसा दान है या यह कृपाण है। शब्दार्थ--(कपाणपक्ष में) प्रयोगियतु = प्रयोग में लाने हैं, घालते हैं। द्विजराज- क्षत्री राजानी पर।