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तीसरा प्रभाव


मूल-दै दधि, दीनो उधार हो केशव, दानी कहा जब मोल ले हैं। दीन्हें बिना तो गई जु गई, न गई न गई घर ही फिर जैहैं। गा हित बैरु कियो. हित हो कब, बैरु किये बरु नाके ही हैं । बैर कै गोरस बेचहुगी, अहो बेच्यो न बेच्यो तो ढारि न दैहैं ।३१ नोट-इसमें कृष्ण और गोपी का सवाल जवाब है, अर्थ यो है । भावार्थ-कृष्ण-हम को दही दो। गोपी-उधार तो हम दे चुकी, ( उधार न दूंगी, नगद दाम देकर ले सकते हो) कृष्ण-तो हम दानी कैसे जो मोल लेकर खाये हम जगात में लेते हैं। अगर न देगी तो मथुरै जा चुकी बिना दिये हम आगे न जाने न देंगे। गोपी-मै अधुरै गई तो क्या न गई तो क्या, लो घर लौटी जाती हूं। कृष्ण-ऐसा करने से तो आज से हमारा तेरा प्रेम गया और तू ने हमसे मानो बैर कर लिया। गोपी-मुझसे तुमसे प्रेम था कब, सुम से बैर कर के आराम ही से रहूंगी। कृष्ण हम से बैर करके तू गोरस बेच सकेगी? गोपीन बेच सकू तो नहीं सही,ढार सो न दूंगी अर्थात् न विक सकैगा तो खुद खाऊँगी पर तुम्हें देना तो लुइका देने के बराबर है-व्यर्थ है-अतः तुम्हें न न दूंगी। (विवेचन)-इस कवित्त में यद्यपि कृष्ण और गोपी छालंबन विभाव से प्रतीत होते हैं, पर अनुझाव और संचारी न