पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/१४६

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बद्रीनारायन जयति जै गिरि धरन अनन्दमय।
जय श्यामा श्याम जुगल सदा जय जय जय जयति जै॥४॥
जय जय जय शशि वदन जयति जय वारिज लोचन।
जय श्री कम्बुक ग्रीव सुभुज मिरनाल सकोचन॥
बिम्ब अधर जय वेणु लसित स्वर शोभित रोचन।
जय वनमाला उर धारी जै ताप विमोचन॥
श्री बदरीनारायण जयति जै सुसीस सोभित मुकुट।
जै जै जसुदा के लाडिले गो चारत लैकर लकुट॥५॥