पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/१७९

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जिन्हें गिनाए या अस्थान। नहिं कोऊ प्रहलाद समान॥
इनमें रह्यो सुशील सुजान। भक्त धार्मिक तुअ मतिमान॥
वह तो दानव सुत भगवान। ए आरज कुल धरम धुरान॥
गज अरु ग्राह पशून महान। को दुख अरु अन्याय मन आन॥
सहि न सक्यो प्रगट्यो भागवान। क्यों इन हेत रह्यो अलसान॥
ए पशु सैं हूँ हीन महान। दया जोग नहिं करि अनुमान॥
मारि मौन माह्यो भगवान। नहिं तो कारन कहियै आन॥
नतरु होय का वृद्ध महान। अति बलहीन भयो भगवान॥