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पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/१८२

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पितर प्रलाप

इसके अन्तर्गत कवि भारतवासियों को अपने आदर्शो से गिर जाने पर उनके आचार विचार तथा संस्कार के लोप हो जाने पर क्षुभित होता है। धर्म का लोप होना, कलह अविद्या, दरिद्रता का फैलना भारतीयों के दुर्दशा का द्योतक है, ऐसी अवस्था में कवि पितरों से कहता है कि अब तुम लोग लौट जाओ, भारत में तुम्हारी मान्यता न हो पावेगी। इस कविता में तत्कालीन राजनैतिक, धार्मिक, सामाजिक समस्याओं का सुन्दर चित्र अंकित किया गया है।

—सं० १९४२