यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
शोकाश्रु विन्दु अपने अनन्य मित्र भारतेन्दु बाबू की मृत्यु पर यह कवि के शोकाश्रु बिन्दु हैं। कवि का उन पर कितना स्नेह था और उनकी कितनी महान् आत्मा थी इसी का चित्रण इस के अन्तर्गत है। कवि के शब्दों में :- "मित्र क्यों न रोवै, तेरो शत्रु क्यों न होवै तऊ । पूरो पशु होवैना, तो क्या मजाल रोवैना॥" इसी प्रकार अपने अनन्यसखा श्री कृष्णदेव शरण सिंह जी की मृत्यु के ऊपर भी आपने एक कविता लिखी है जो इसी स्तम्भ में संकलित की गई है। सम्वत् १९४२ तथा सन् १९०६ ई०