यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
मंगलाशा भारतेन्दु युग में आत्म सम्मान की भावना उस समय के कवियों में जागरित हो गई थी, बृटिश शासन से वे ऊब गए थे। श्री वादा भाई नौरोजी को जब बृटिश पालियामेण्ट में एक भारतीय मेम्बर चुना गया, तब कवि के प्रसन्नता का ठिकाना न रहा पर जब उन्हें भी काला कहकर सम्बोधित किया गया तब कवि इस अपमान को न सहन कर सका इस प्रकार इस कविता में हमें हर्ष और शोक का समन्वय मिलता है और कवि बोल उठता है :- "कारन के ही कारन गोरन लहत बड़ाई" -सं० १९४९