पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/२८३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

हास्य बिन्दु प्रेमघन जी का जीवन ही हास्य से ओतप्रोत था, स्वजन सम्बन्धी, मित्र सबके ऊपर उनकी हास्य की कविताएँ हैं। इन कविताओं में उनकी जिन्दादिली और उक्ति वैचित्र्य दिखाई पड़ती है। सं० १९५५