२९१ बधाई होवै जुबिली जशन मुवारक, भारत बिपत वुहारक।।टे०॥ स्वारथ पक्षपात अन्याय कर हैकर टिक्कस टारक। बहुत दिनन को दुःखित देस हो कछुदिन धीरज धारक । ईस कृपा सब सत्व याहि फिरि मिलें, सदा सुख कारक। महरानी के सुखद राज को होय सत्य असमारक ॥ स्वीकार पत्र इस जुबिली बधाई कविता के विषय में जो अब तक स्वीकार पत्र वा धन्यवाद पत्र सरकार अर्थात् श्री मन्महाराजाधिराज गवर्नर जेनरल बीरेश (बड़े लाट साहेब बहादुर) तथा कमिश्नर साहिब के यहाँ से आए हैं, उन्हें भी हम प्रकाशित कर देना उचित जानकर ज्यों का त्यों यहाँ प्रकाशित करते हैं। भाद्रपद सम्वत् १९४४ हरिगीतों धनि दिवस बरिस पचास राजत राजराजेश्वरि भई। या हिन्द कैसर हिन्द तुम दिन दिनन दुति दूनी दई। बदरीनारायन हूं हरखि आसीस यह दीनी नई। राजहु पचास बरीस औरहु करिजगत मंगलमई॥ वर्णचित जी-अहु बरिस पचास तुम औरहु सहित अनन्द । ओ-भारतराजेश्वरी! प्रगटत. न्याय अमन्द। डी-ठ दया की आप की रहै प्रजा पर नित्त बी—स कहं कोऊ कछू रहै नीति युत चित्त। एल-लनाकुलकमल की अमल प्रकाशक भानु। ई–स कृपा अन्यायतम हरो हिन्द दुखदानु॥
पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/३२०
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