सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/३३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

- तासो बॉचन सुविधा हित पारसी सबद सब। लेखक लोग लिखै, परिचय बस बॉचि सके तब। यह अंगरेजी राजहि मै बाढी कठिनाई। खिचडी भाषा लिपि घसीट मै जब सो आई। पूरब यवन प्रधान पुरुष निज नैनन देखत। भाषा बरन अभिज्ञ जहाँ कोऊ त्रुटि पेखत ॥ करत रहे प्रतिकार सुधार तिरस्कृत लेखक। जासो लिपि अरु भाषा बिगरत रही न भर सक॥ सुद्ध पारसी भाषा नस्तालीक' लेख सँग। यवन राज के होत पत्र तब सुपठ औ सुढग ॥ अब अगरेजी सासक भूलिहु लखत न ता कहें। दसखत ही करि देत सिरिस्तेदार कहत जहँ ॥ अरु जौ लखै तऊ पढि सकत न एकहु सब्दहि। सुनहिं और के मुखहिं सुनेहु नीके नहि समुझहि ॥ जासो चली खुलासा लिखिबे की अब चाली। याही रीति चलत सब राज काज परनाली॥ १ कोई नहीं पढ़ सकता। उसके कई छन्द जिन्हे उन्होने शुद्ध शुद्ध उच्चारण के लिए जेर जवर को छोड अनेक नवीन चिन्ह भी देकर लिखे हैं तो भी कोई मोल्वी चाहे वह अंगरेजी भी जानता हो बेखटक शुद्ध शुद्ध नहीं पढ सकता। उदाहरणार्थ हाँ लिखते हैं- खुदा (गाड) है (लार्ड) है होशमन्द। (क्रियेटर) सिरजनहार दानिशमन्द ॥ बना फादरे मुतलक (आलमायटी)। फरिश्तै मलिक जान है (डेटो)। (रेवेलेशन) इलहाम है नूर (लाइट)। (रिपेन्टेन्स) तोबा है और रस्म (राइट)॥ (डवीटी) है आविद समझ रास्त रास्त। रियाजत (पेनेन्स) और रोजा है (फास्ट)। १. नस्तालीक सुस्पष्टलिपि।