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आर्याभिनन्दन
प्रिंस आफ़ वेल्स के भारत आगमन पर यह कविता प्रेमघन जी ने लिखी थी। अतिथि के प्रति समादर का प्रदर्शन भारतीय परम्परा के अन्तर्गत है, अस्तु इस प्रकार की कविताएँ चाटुकारिता की नहीं हैं, वरंच आभार प्रदर्शन को, क्योंकि नवाबी के शासन काल से अंग्रेज़ी राज्य काल में जनता को सुख प्राप्त हुआ था—जिसका प्रदर्शन सभ्य व्यक्तियों को करना समुचित ही होता था। पर साथ ही साथ कवि हृदय, भारतीय जनता की खामियों, और उनकी दुर्दशा के प्रति भी जागरुक था। वह बार बार जनता को जागरित करता हुआ शासकों से इस देश के प्रति आवश्यकीय सुधारों की माँग करने में नहीं चूकता था। इसी भावना की द्योतक यह एक उत्तम रचना है।
सं॰ १९६३