पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/३९८

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आर्याभिनन्दन अर्थात् श्रीमान् युवराज जार्ज फ्रेडरिक अर्नेस्ट आलबर्ट प्रिन्स आफ़ वेल्स के भारत शुभागमन पर स्वागतार्थ विरचित दोहा स्वागत ! स्वागत ! आप हित भावी भारत भूप। बड़े भाग सों पाइयत ऐसे अतिथि अनूप ॥ पलक पाँबड़े आप हित जोपै देहिं बिछाय। लोचन जल पद जुगल तुव धौवें हिय हरषाय ।। सब कुछ वारै आप के ऊपर तौहूं थोर । लखि तुव गुरुजन राज कृत गुरु उपकारनि ओर॥ जिहि प्रभाय भारत सक्यो बहुतेरे दुख खोय। उन्नति हू बहु करि सक्यो सावधान अति होय ॥ तऊ अजहुँ याकी दसा अधिक दया के जोग। जासु आस तुव तात सों हैं राखत हम लोग। धन्य भाग्य तिहि लखन हित तुम इत आये आज। प्यारी युवरानी सहित हे प्यारे युवराज ॥ तदपि न भारत वह रह्यो जिहि गावत इतिहास । जाहि लखन हित नित जगत जन मन रहत हुलास ॥ अंग, वंग, कुरु, मध्य, पञ्चाल, मगध, कसमीर। सूरसेन, मिथिला, दसा लखि मन होत अधीर॥