पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

५६630 दो शब्द भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, अम्बिकादत्त व्यास, प्रेमघन बदरी नारायण चौधरी, बालकृष्ण भट्ट, प्रताप नारायण मिश्र और गोविन्द नारायण मिश्र, उस युग के नाम हैं जो हमारे बहुत निकट हैं किन्तु हमसे अब कुछ हट गया है। जिस डोर ने हमें उनसे बाँध रखा है वह अभी बहुत स्पष्ट है। जो केन्द्र उन्होंने बनाया था हम उसी की सीधी किरनें हैं यद्यपि हमने अपना भी अब नया केन्द्र बना लिया है। अपना निकास-स्थान अभी हमारी आँख के सामने है। उसकी याद मीठी और प्यारी है। जिन प्रतिभाओं ने वह युग बनाया और हमारे युग का बीज डाला उनकी कृतियाँ हमारी सम्पत्ति हैं और रक्षा के योग्य हैं। आगे के लिये जो नया रास्ता बनाने वाले हैं उनके लिये यह जानना उचित है कि किस रास्ते से वे आए हैं। उस ज्ञान की रक्षा में यह 'प्रेमघन-सर्वस्व' सहायक होगा। हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन को प्रेमघन जी के सभापतित्व का गौरव और उनके सभापतित्व में मंत्री रहकर काम करने का सौभाग्य मुझे मिला था। प्रेमघनजी को देखने और जानने और उनके आशीर्वाद पाने का मुझे जो अवसर मिला वह मेरे जीवन की संचित स्मृतियों में से है। प्रयाग आश्विन कृष्ण ३, रविवार संवत् १९९६ विक्रम् -पुरुषोत्तमदास टंडन