संगीत काव्य
[रचनाकाल : सं॰ १९३२ से १९७९]
संगीत की भावना का उदय प्रेमघन जी के जीवन काल में बहुत प्रारम्भ से ही हो गया था, कवि स्वयम् संगीतज्ञ था। अपने मधुर भावों को संगीत के अन्तर्गत रखकर प्रेमघन जी ने संगीत की काव्य परम्परा का ही परिचय नहीं दिया वरञ्च सुन्दर सरस पदावलियों द्वारा सूर के मधुर भावों की शैली को सिंचित किया। यदि एक ओर वसंत मकरन्द बिन्दु में कवि के वहम् के दिनों की मतवाली ताने हमें मिलती हैं, तो दूसरी ओर वर्षा बिन्दु में हमें मेघाछन्न अम्बर, तड़ित के गर्जन तथा मयूरों के नर्तन के चित्र हमें चित्रित दिखाई पड़ते हैं। उर्दू बिन्दु में उर्दू की ग़जलें, रेखता, लावनियां संग्रहीत हैं। आपने उर्दू कविता में भारतीयता का छाप दिया है, हाला और प्याला, आशिक, माशूक तो उर्दू साहित्य में मिलते ही हैं, पर भारतीय रूपकों का समावेश प्रेमघन जी की अपनी देन है।
स्फुट बिन्दु में आपके गीतों का संकलन मात्र ही है जो उपरोक्त श्रेणियों में नहीं संग्रहीत किये गये हैं। स्फुट विचारों के स्फुट गीत इसमें हैं।
राष्ट्रीय चेतना के गीत स्वदेशबिन्दु में संग्रहीत हैं। इसमें कवि की वाणी द्वारा तत्कालीन राष्ट्रीय चेतना के विचारों का चित्र हमें दिखलाई पड़ता है।