पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५०६

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कजली

प्रधान प्रकार

अर्थात् रागिनी वा गीत का मूल वा मुख्य रूप

सामान्य लय


जय जय प्यारी राधा रानी, जय जय मन मोहन बृजराज॥
दोउ चकोर, दोउ चन्द, दोऊ घन, दोउ चातक सिरताज।
दोऊ अमल, कमल अलि दोऊ सजे सजीले साज॥
दोऊ प्रेम भाजन, दोउ प्रेमी, दोऊ रूप जहाज।
सुकबि प्रेमघन के मिलि दोऊ सबै सँवारौ काज॥१॥

दूसरी


जय जय राधा वदन सरोरुह मधुकर मोहन वनमाली॥
विहरसि युवति समूह समेतो नव शोभा शाली।
कुसुमित बकुल कदम्ब निकुञ्जे गुञ्जति भ्रमराली॥
कंस विमर्दन कालियमन्थन कुञ्चित कच जाली।
प्रसरतु सदा प्रेमघन हृदि तव नव पद प्रेम प्रणाली॥२॥

तीसरी


हे हरि! हमरी ओरियाँहूँ अब फेरौ तनिक दया दृगकोर॥
राधा रमन, समन बाधा, नट नागर, नन्द किसोर।
मुनिमन मानस के मराल, बृज जुबती जन चितचोर॥
अधम उधारन, पतितन पावन, अवगुन गनो न मोर।
बरसहु नित नित प्रेम प्रेमघन! मन मैं सरस अथोर॥३॥