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पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५७६

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आहा कैसी छबि छाय रही—झूलन की हूलन भाय रही॥टेक॥
मचकत हिंडोर नासा सकोर, पिय हिय प्यारी लपटाय रही॥
सिसकीन सोर भौंहन मरोर चपलति चख चोट चलाय रही॥
श्रीबद्रीनारायन जू जिय मैं शोभा सरस सोभाय रही॥

झूलैं राधिका श्याम वही बन॥टेक॥
कलिन्दी तट झूलन शोभा देखि लाजत काम वही बन॥
इत मनमोहन बंसी बजावत उत गावत वाम वही बन॥
कारी जुल्फनि मैं फँसि फँसि कै उरझत मोती दाम वही बन॥
बद्रीनाथ रसिक यह शोभा निरखत आये जाय वही बन॥

हहा! अब झूलन झूलन दे रे॥टेक॥
कूलन कालिन्दी के कदमन कलित कुंज नेरे;
केकी कलरव करत नचत चातक चहुँ दिशि करे॥
झूलन सुख मूलन के लागे नाक सकोरन;
झूठी संक लंक लचकन करि, आय लगत हिय मेरे॥
फूलन सों फूले बन छबि जनु चहत चितै चित चेरे;
जिन पै मधुर मंजु गूँजत अलि मदन मंत्र जनु टेरे॥