पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५८५

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रस भरे नैन की सैनन सों मन, बस कर लै गयो सावलियाँ॥टेक॥
गोलन कपोलन मैं लहुराती प्यारी काली अलकावलियां॥
बदरी नारायन गाय २ बिलमाय बनायो बावरिया रे॥

न्यारे हाय हमारे सांवलियां कैसो बंसी बजाई रे॥टेक॥
पड़त कान कर देत बिकल बस, तानें ऐसी सुनाई रे॥
श्री बदरी नारायन जू जनु कोखे बिखन बुझाई रे॥

रतनारे नैन वारे ये रतनारे नैन वारे॥टेक॥
काहे है मारत जान जान॥टेक॥
बदरी नारायन ये तेरे अजब अनोखे भाले ये रतनारे नैन वारे॥

आओ आओ नित बात न बनाओ जी॥
घातन करत जनु जोरा जोरी जाओ जी॥टेक॥
बदरी नाथ हाथ इत लाओ,
अबस न बरबस नितहिं सताओ जी॥
तरसत रहत नयन दरसन बिन,
मिलो हाय अब न छबीले छल छाओ जी॥

अब तोरी प्यारी प्यारी प्यारी सरत
चित चोरत कारी कारी जुल्फन मन॥टेक॥
श्री बद्री नारायन जू पिय—मारि मूठ जनु नैन सन॥

ये लटकाली काली चमकाली आली घूँघर वाली
पाली व्याली मतवाली सम॥टेक॥
बद्रीनाथ फंसावनि डाली निपट निराली चाल अनूपम॥

ठुमरी


तेरी चितवन मन मैं चुभी चैन चितये बिन नाहीं रे॥टेक॥
पिय बद्री नारायन मनो मूरत मैन बस गई बरबस मन माहीं॥