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पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/६५७

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—६३६—

श्री बदरी नारायन जू पिय,
सुधि बुधि सब हर लीनो॥

होली यति


आओ जी आओ जी बांके यार, कित जात चले भजि॥टेक॥
नोखे छयल बने घूमत हौ, गावत फिरत जो गारी,
श्री बदरी नारायन जू परिहै पिचकिन की मार॥

एरी गोरी! होरी हो रही री॥टेक॥
खेलत अलि हिलि मिलि मन मोहन, श्री वृषभान किशोरी॥

चलियत कत नहिं सज धज खेलन अब कत गहर करो री॥
बद्रीनाथ दोऊ रंगराते, करत युगल चित चोरी॥

होली—सोहनी


सुघर खेलार यार बनमाली बहकि न गाली गाओ॥टेक॥
लखि टुक मुख अपनो तब एहो, हम पर रँग बरसाओ॥

बालक एक अहीर दीन के, सुरपति शान जनाओ॥
श्री बद्री नारायन कविवर, वाद विवाद बढ़ाओ।

ललित


भाजत रँग डार डार एहो जसुमति कुमार,
देखो इत ठाढ़ी वृषभानु की लली॥टेक॥
गावत गाली बनाय, मीठी मुरली बजाय,
रोकत वर वामन बन कुंज की गली॥
देखत नहिँ तुमरी ओर, राधे माधो किशोर,
बदरी नारायन लहि स्वात या भली॥