पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/६६७

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बहुरि भारत में सकल सम्पत्ति साहस हलत।
ज्यों ज्यों चपल॰
फेरि कर गह अमित करगह दर्प मिल दल दलत।
कल्पतरु बनि पट पवित्र प्रचारि शुभ फल फलत॥
ज्यों ज्यों चपल॰
बहिष्कृत होलिका बीच बसन बिदेसी जलत।
एकता सांचा सवांरि स्वराज्य सिक्का ढलत॥
ज्यों ज्यों चपल॰
देशद्रोहिन के कुतरकनि करत साबित गलत।
राज अधिकारी लखत जे खल तिन्हें अति खलत॥
ज्यों ज्यों चपल॰
बैर फूट बढ़ाय भारतबासिनैं जे छलत।
प्रेमघन तिन मिलन लखि उनको हियो खलभलत॥
ज्यों ज्यों चपल चरखा चलत॥

होली राग काफी


मची है भारत में कैसी होली सब अनीति गति हो ली।
पी प्रमाद मदिरा अधिकारी लाज सरम सब घोली।

लगे दुसह अन्याय मचावन निरख प्रजा अति भोली।
देश असेस अन्न धन उद्यम सारी सम्पति ढो ली॥

लाय दियो होलिका बिदेसी बसन मचाय ठिठोली।
कियो हीन रोटी धोती नर नाहीं चादर चोली॥

निज दुख व्यथा कथा नहि कहिबे पावत कोउ मुह खोली।
लगे कुमकुमा बम को छूटन पिचकारिन सो गोली॥