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प्रेमघन सर्वस्व

कई अनुचरों के अतिरिक्त और वहाँ कोई भी नहीं है। वो लोग हम सबों को देखकर अति प्रसन्न हो स्वागत स्वागत कह उठे और यथा योग्य प्रणामाशिषानन्तर हम लोग एकत्र मिल बैठें, गृही महाशय हमलोगों की आवश्यक अभ्यर्थना और सत्कार करने में लगे और हम लोग चारों ओर दृष्टि दौड़ा चले।

महाराज ने पूछा, कि—कहिये आप कब आये? कहाँ ठहरे और इस समय कहाँ कहाँ की सेर करत ना रहें है? मैंने और आवश्यक उत्तर के संग इस वृहत परिक्रमा का हाल बतलाया सुन कर महाराज ने भट्टाचार्य महाशय से पूछा, कि—"कहो मित्र इतना धुम धाम कर क्या लाभ उठाया? क्या कोई ऐसी अपूर्व वस्तु भी देखी जो वर्णनीय हो?"

भट्टाचार्य महाशय ने कहा, कि—एक? असंख्य वस्तु, और अनेक अद्भुत दृश्य। तथापि अभी जो ऐरावत दर्शन हुआ वह अति अपूर्व था।

राजा॰—क्या आज कुछ अधिक गाढ़ी छनी है?

भयं॰ भट्टा॰—हाँ, प्रातःकाल यमुना जी पर चौबों का झूण्ड जमा था, वहीं अच्छी जमुना की कीचसी। किन्तु इससे और उससे क्या सम्बन्ध?

राजा॰—उच्चैश्रवा की पीठ पर चढ़ जब उच्चातिउच्च स्वर्गारोहण सुलभ है, तब ऐरावत दर्शन में क्या आश्चर्य है?

भयं॰ भट्टा॰—नहीं महाराज आपने क्या नहीं देखा? यहीं जो गज-घटा जम रही है, उसमें एक सुवृहत् हस्ती के ऐसे लम्बायमान दन्त द्वै देखे कि सहसा यही अनुमान होने लगा कि यह हस्ती त्रिशुण्ड अवश्य ही है, क्योंकि वे भूमि से कुछ ही ऊपर थे। तो क्या ऐरावत है? किन्तु सोचा. कि—इसका बीच का शुण्ड श्याम क्यों कर हो गया? क्या कलिकाल के प्रभाव से? फिर वह तो स्वर्ग में रहता है। किन्तु साथ ही सोचा, कि—कदाचित लाट कर्जन इन्द्र बन कर निकलने की लालसा से उसे भी मँगनी न माँग लाये हो। अथवा कौन जाने कि हम लोगों की भाँति अमर निकर भी इस अनोखी लीला को देखने अर्थ मालोक में आ गये हैं और उनके राजा सुरेन्द्र कदाचित यहाँ निजवाहन को छोड़कर स्टेशन पर लाटजी के स्वागत को पधारे हों, क्योंकि अनेक नरेन्द्र वहाँ उपस्थित ही है।

राजा॰—क्या आपको पीछे से इसमें फिर कुछ संदेह भी हो गया?

भयं॰ भट्टा॰—नहीं महाराज। यदि उसका रंग श्वेत होता, तो तीन शुण्ड के मतंग को ऐरावत छोड़ कोई और क्या कहता? और "बस्यो मनों