पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/३५९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३२७
नेशनल कांग्रेस की दुर्दशा

की भी हो चलीं कि जिसे सुन शांत के नेता दहल कर उग्रों से अलग होने वा राष्ट्रीय सभा के उग्र विचारों को शिथिल करने पर विवश हये।" कदाचित् शांत दल के नेताओं पर कुछ उसका प्रभाव पड़ा हो, नहीं तो स्वभाव ही से शांत दल वाले प्रायः सबी कार्य शांतिपूर्वक करना चाहते, यों ही यावत्सम्भव राज्याधिकारियों की कृपा के अभिलाषी रहते तथा व्यर्थ के उत्तेजना के विरोधी है; तथापि जो कि उनमें प्रायः सम्भ्रांत और विशेषतः राज सम्मान प्राप्त पुरुषों की संख्या अधिक है, अतः वे उग्रों की इस आशंका के लक्ष्य हुये हो, चाहें कि यह सब लोग राज्याधिकारियों के त्रास और आदेश ही से राष्ट्रीय सभा को पीछे हटाने पर उद्यत है। अवश्य ही कुछ राज सम्मान प्राप्त पुरुष व्यर्थ उस सम्मान को नष्ट करना तो न चाहेंगे, किन्तु हम इसे स्वीकार करने पर तत्पर नहीं हैं कि वे राज्याधिकारियों के प्रलोभन से देश के अमङ्गल साधन में प्रवृत्त होंगे यह केवल मत का विरोध मात्र है जो स्वभाव सिद्ध है तथापि यदि उग्रों के कथनानुसार राज्याधिकारियों की इच्छा वा इङ्गित के अनुसार ही उग्रों के दबाने का राष्ट्रीय सभा के पीछे हटाने में शांत दल निष्फल प्रयत्न हुआ, तो मानो वह साम्राज्य की राज भक्ति वा राज्याधिकारियों के आज्ञा पालन की पराकाष्ठा दिखलाकर उऋण भी हो चुका, अब देखना है कि इस भयङ्कर राजभक्ति की परीक्षा देकर वे साम्राज्य से कौनसा अलभ्य लाभ पाकर कृतार्थ होते हैं। अन्यथा स्वयम् हताश हो वे उग्रों के अनुगामी होंगे। जो हो, सब अवस्थाओं में दोनों का एक ही सिद्धान्त एक ही अनुष्ठान और एक ही समूह रहना चाहिये, पार्थक्य किसी प्रकार का होना कदापि उचित नहीं है।

अतः अब दोनों को मिलकर देश की सच्ची सेवा में प्रवृत्त होना चाहिये। उगों को व्यर्थ का प्रमाद त्याग कर उचित कृत्य मात्र पर लक्ष्य रख, शान्तों से मिलकर एकता को दृढ़ रखना चाहिये और शान्तों को भी उनका साथ कदापि न छोड़ना चाहिये और विगत निन्दनीय परस्पर के दुराग्रह को शोचनीय फल से शिक्षा ग्रहण करनी चाहिये, क्योंकि "विषादष्य मृतम् ग्राह्यम्।" सुतराम्—'"बीती ताहि बिसारि कै आगे की सुधि लेहु, जो बनि आवै सहज मैं ताही मैं चित देहु॥"

यद्यपि "शत्रोरपिगुणावाच्या दोषावाच्या गुरोरपि।" की नीति के अनुसार कर्तव्य परबस हो किसी विशेष दल के दोष दर्शन में प्रवृत हो के दोषी न भी हों, तथापि उपसंहार में हम उभय दल के नेताओं से अपनी पक्षपात शून्य