लोगो को महादेव पर एक श्रद्धा-सी हो गयी। एक घंटा बीत गया पर उन सहस्रों मनुष्य में से एक भी न खड़ा हुआ तब महादेव ने फिर कहा-'मालूम होता है, आप लोग अपना-अपना हिसाब भूल गये हैं। इसलिए आज कथा होने दीजिए, मैं एक महीने तक आपकी राह देखूँगा। इसके पीछे तीर्थ यात्रा करने चला जाऊँगा। आप सब भाइयों से मेरी बिनती है कि आप मेरा उद्धार करें।
एक महीने तक महादेव लेनदारों की राह देखता रहा। रात को चोरों के भय से नींद न आती। अब वह कोई काम न करता। शराब का चसका भी छूटा। साधु-अभ्यागत जो द्वार पर आ जाते, उनका यथायोग्य सत्कार करता। दूर-दूर उसका सुयश फैल गया। यहाँ तक कि महीना पूरा हो गया और एक आदमी भी हिसाब लेने न आया। अब महादेव को ज्ञात हुआ कि संसार में कितना धर्म, कितना सम्व्यवहार है! अब उसे मालूम हुआ कि संसार बुरों के लिए बुरा है, और अच्छों के लिए अच्छा।
( ६ )
इस घटना को हुए ५० वर्ष बीत चुके हैं। आप बेंदो जाइए, तो दूर ही से एक सुनहरा कलस दिखायी देता है। यह ठाकुरद्वारे का कलस है। उससे मिला हुआ एक पक्का तालाब है, जिसमें खूब कमल खिले रहते हैं। उसकी मछलियाँ कोई नहीं पकड़ता। तालाब के किनारे एक विशाल' समाधि है। यही आत्माराम का स्मृति-चिह्न है। उसके संबंध में विभिन्न किवदंतियाँ प्रचलित हैं। कोई कहता है उसका रत्न-जटित पिंजड़ा स्वर्ग को चला गया। कोई कहता है, वह 'सत्त गुरदत्त' कहता हुआ अंतर्ध्दान हो गया। पर यथार्थ यह है कि उस पक्षी-रूपी चन्द्र को किसी बिल्ली-राहु ने ग्रस लिया। लोग कहते हैं, आधी रात को अभी तक तालाब के किनारे आवाज आती है-