पृष्ठ:प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियां.djvu/१४८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।

१४८
प्रेमचन्द की सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ


वक्त एक चौकीदार आपके सिर पर सवार हो। जरा-सी देर हुई घर आने में और फौरन् जवाब तलब हुआ, कहाँ थे अब तक? आप कहीं बाहर निकले और फौरन् सवाल हुआ, कहाँ जाते हो? और कहीं दुर्भाग्य से पत्नीजी भी साथ हो गयीं, तब तो डूब मरने के सिवा आपके लिए कोई मार्ग ही नहीं रह जाता। ना भैया, मुझे आपसे जरा भी सहानुभूति नहीं। बच्चे को जरा-सा जुकाम हुआ और आप बेतहाशा दौड़े चले जा रहे हैं होमियोपैथिक डाक्टर के पास। जरा उम्र खिसकी और लौडे मनाने लगे कि अब आप प्रस्थान करें और वह गुलछर्रें उड़ायें। मौका मिला तो आपको जहर खिला दिया और मशहूर किया कि आपको कॉलरा हो गया था। मैं इस जंजाल में नहीं पड़ता।

कुन्ती आ गयी। विक्रम की छोटी बहन थी, कोई ग्यारह साल की। छठे में पढ़ती थी और बराबर फेल होती थी। बड़ी चिबिल्ली, बड़ी शोख! इतने धमाके से द्वार खोले कि हम दोनों चौंककर उठ खड़े हुए।

विक्रम ने बिगड़कर कहा--तू बड़ी शैतान है कुन्ती, किसने तुझे बुलाया यहाँ?

कुन्ती ने खुफिया पुलिस की तरह कमरे में नजर दौड़ाकर कहा- तुम लोग हरदम यहाँ किवाड़ बन्द किये बैठे क्या बातें किया करते हो। जब देखो, यहीं बैठे हो। न कहीं घूमने जाते हो, न तमाशा देखने, कोई जादू-मन्तर जगाते होगे?

विक्रम ने उसकी गरदन पकड़कर हिलाते हुए कहा-हाँ, एक मंतर जगा रहे हैं, जिसमें तुझे एक दूल्हा मिले, जो रोज गिनकर पाँच हण्टर जमाये सड़ासड़!

कुन्ती उसकी पीठ पर बैठकर बोली-मैं ऐसे दूल्हे से ब्याह करूँगी, जो मेरे सामने खड़ा पूँछ हिलाता रहेगा। मैं मिठाई के दोने फेंक दूंगी और वह चाटेगा। जरा भी ची-चपड़ करेगा, तो कान गर्म कर दूंगी।अम्माँ के लॉटरी के रुपये मिलेंगे, तो पचास हजार मुझे दे देंगी। बस, चैन करूंँगी। मैं दोनों