मैं खिसियाकर डाकखाने की तरफ चला कि विक्रम मुसकराता हुआ साइकिल पर आ पहुँचा। उसे देखते ही सभी जैसे पागल हो गये। दोनों ठाकुर सामने ही खड़े थे। दोनों बाज की तरह झपटे। प्रकाश के थाल में थोड़ी-सी मिठाई बच रही थी। उसने थाल जमीन पर पटका और दौड़ा। और मैंने तो उस उन्माद में विक्रम को गोद में उठा लिया; मगर कोई उससे कुछ पूछता नहीं, सभी जयजयकार की हाँक लगा रहे हैं।
बड़े ठाकुर ने आकाश की ओर देखा-बोलो राजारामचन्द्र की जय!
छोटे ठाकुर ने छलाँग मारी-बोलो हनुमानजी की जय!
प्रकाश तालियाँ बजाता हुआ चीखा-दुहाई झक्कड़ बाबा की!
विक्रम ने और जोर से कहकहा मारा--फिर अलग खड़ा होकर बोला--जिसका नाम आया है, उससे एक लाख लॅूगा। बोलो है मंजूर?
बड़े ठाकुर ने उसका हाथ पकड़ा-पहले बता तो!
'ना! यों नहीं बताता।
छोटे ठाकुर बिगड़े-महज बताने के लिए एक लाख? शाबाश!
प्रकाश ने भी त्योरी चढ़ायीं-क्या डाकखाना हमने देखा नहीं है है?
'अच्छा तो अपना-अपना नाम सुनने के लिए तैयार हो जाओ।"
सभी फौजी अटेंशन की दशा में निश्चल खड़े हो गये।
'होश-हवाश ठीक रखना।
सभी पूर्ण सचेत हो गये।
'अच्छा तो सुनिए कान खोलकर, इस शहर का सफाया है। इस शहर का ही नहीं, सम्पूर्ण भारत का सफाया है। अमेरिका के एक हब्शी का नाम आ गया।
बड़े ठाकुर मल्लाये-झूठ, झूठ, बिलकुल झूठ!
छोटे ठाकुर ने पैंतरा बदला-कभी नहीं। तीन महीने की तपस्या यों हो रही! वाह!