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पृष्ठ:प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियां.djvu/१६२

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प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ

मैं भी हँसा-हाँ, बात तो यथार्थ में यही है, और हम दोनों लिखा-पढ़ी के लिए लड़े मरते थे; मगर सच बताना, तुम्हारी नीयत खराब हुई थी की नहीं?

विक्रम मुसकराकर बोला-अब क्या करोगे पूछकर। पर्दा ढंँका रहने दो।