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लाग-डाँट


के कायल थे, चौधरी यूनानी प्रथा के माननेवाले। दोनों चाहे रोग से मर जाते, पर अपने सिद्धान्तों को न छोड़ते।

( २ )

जब देश में राजनैतिक आन्दोलन शुरू हुआ तो उसकी भनक उस गाँव में भी पहुँची। चौधरी ने आन्दोलन का पक्ष लिया, भगत उसके विपक्षी ही गये। एक सजन ने आकर गाँव में किसान सभा खोली। चौधरी उसमें शरीक हुए, भगत अलग रहे। जागृति और बढ़ी, स्वराज्य की चर्चा होने लगी। चौधरी स्वराज्यवादी हो गये, भगत ने राज्यभक्ति का पक्ष लिया। चौधरी का धर स्वराज्यवादियों का अड्डा हो गया, भगत का घर राज्यभक्तों का क्लब बन गया।

चौधरी जनता में स्वराज्यवाद का प्रचार करने लगे-मित्रो, स्वराज्य का अर्थ है अपना राज। अपने देश में अपना राज हो तो वह अच्छा है कि किसी दूसरे का राज हो वह?

जनता ने कहा-अपना राज हो यह अच्छा है।

चौधरी-तो यह स्वराज्य कैसे मिलेगा? आत्मबल से, पुरुषार्थ से, मैल से, एक दूसरे से द्वेष छोड़ दो, अपने झगड़े आप मिलकर निपटा लो।

एक शका-आप तो नित्य अदालत में खड़े रहते हैं।

चौधरी-हाँ, पर आज से अदालत जाऊँ तो मुझे गऊहत्या का पाप लगे। तुम्हें चाहिए कि तुम अपनी गाढ़ी कमाई अपने बाल-बच्चों को खिलाओ, और बचे तो परोपकार में लगाओ, वकील-मुख्तारों की जेब क्यों भरते हो? थानेदार को घूस क्यों देते हो, अमलों की चिरौरी क्यों करते हो? पहले हमारे लड़के अपने धर्म को शिक्षा पाते थे, वे सदाचारी, त्यागी, पुरुषार्थी बनते थे। अब वे विदेशी मदरसों में पढ़कर चाकरी करते हैं, घूस खाते हैं, शोक करते हैं, अपने देवताओं और पितरों की निन्दा करते हैं, सिगरेट पीते हैं, बाल बनाते हैं और हाकिमों को गोड़-