पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/१५

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गबन :15
 


लड़का मुझे सौंप दिया, तो मैं भी दिखा देना चाहता हूं कि हम भी शरीफ हैं और शील का मूल्य पहचानते हैं। अगर उन्होंने हेकड़ी जताई होती, तो अलबत्ता उनकी खबर लेता। दीनदयाल एक हजार तो दे आए, पर दयानाथ का बोझ हल्का करने के बदले और भारी कर दिया। वह कर्ज से कोसों भागते थे। इस शादी में उन्होंने ‘मियां की जूती मियां की चांद' वाली नीति निभाने की ठानी थी; पर दीनदयाल की सहयता ने उनका संयम तोड़ दिया। वे सारे टीमटाम, नाच-तमाशे, जिनकी कल्पना का उन्होंने गला घोंट दिया था, वृहद् रूप धारण करके उनके सामने आ गए। बंधा हुआ घोड़ा थाने से खुल गया, उसे कौन रोक सकता है। धूमधाम से विवाह करने की ठन गई। पहले जोड़े-गहने को उन्होंने गौण समझ रखा था, अब वही सबसे मुख्य हो गया। ऐसा चढ़ाव हो कि मड़वे वाले देखकर फड़क उठे। सबकी आंखें खुल जाएं। कोई तीन हजार का सामान बनवा डाला। सर्राफ को एक हजार नगद मिल गए, एक हजार के लिए एक सप्ताह का वादा हुआ, तो उसने कोई आपत्ति न की। सोचा-दो हजार सीधे हुए जाते हैं, पांच-सात सौ रुपये रह जाएंगे, वह कहां जाते हैं। व्यापारी की लागत निकल आती हैं, तो नफे को तत्काल पाने के लिए आग्रह नहीं करती। फिर भी चन्द्रहार की कसर रह गई। जड़ाऊ चन्द्रहार एक हजार से नीचे अच्छा नहीं मिल सकता था। दयानाथ का जी तो लहराया। लगे हाथ उसे भी ले लो, किसी को नाक सिकोड़ने की जगह तो न रहेगी पर जागेश्वरी इस पर राजी न हुई।

बाजी पलट चुकी थी।

दयानाथ ने गर्म होकर कहा—तुम्हें क्या, तुम तो घर में बैठी रहोगी। मौत तो मेरी होगी, जब उधर के लोग नाक-भौं सिकोड़ने लगेंगे।

जागेश्वरी-- दोगे कहां से, कुछ सोचा है?

दयानाथ-कम-से-कम एक हजार तो वहां मिल ही जाएंगे।

जागेश्वरी-- खून मुंह लग गया क्या?

दयानाथ ने शरमाकर कहा-नहीं-नहीं, मगर आखिर वहां - तो कुछ मिलेगा?

जागेश्वरी-वहां मिलेगा, तो वहां खर्च भी होगी। नाम जोड़े-इने से नहीं होता, दान-दक्षिणा से होता है।

इस तरह चन्द्रहार का प्रस्ताव रद्द हो गया।

मगर दयानाथ दिखावे और नुमाइश को चाहे अनावश्यक समझे, रमानाथ उसे परमावश्यक समझता था। बरात ऐसे धूम से जानी चाहिए कि गांव-भर में शोर मच जाय। पहले दूल्हे के लिए पालकी का विचार था। रमानाथ ने मोटर पर जोर दिया। उसके मित्रों ने इसका अनुमोदन किया, प्रस्ताव स्वीकृत हो गया। दयनाथ एकांतप्रिय जीव थे, न किसी से मित्रता थी न किसी से मेल-जोल। रमानाथ मिलनसार युवक था, उसके मित्र हो इस समय हर एक काम में अग्रसर हो रहे थे। वे जो काम करते, दिल खोलकर आतिशबाजियां बनवाई तो अव्वल दर्जे की। नाच ठीक किया, तो अव्वल दर्जे का, बाजे-गाजे भी अव्वल दर्जे के, दोयम या सोयम को वहां जिक्र ही न था। दयानाथ उसकी उच्छृंखलता देखकर चिंतित तो हो जाते थे, पर कुछ कह न सकते थे। क्या कहते ।