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गबन : 159
 


न माना। हंसते हुए बोले–भई अब चाहे, नीच कहो, चाहे दगाबाज कहो; पर हम इन्हें छोड़ नहीं सकते। ऐसे शिकार रोज नहीं मिलते। कौल के पीछे अपनी तरक्की नहीं छोड़ सकता।

दरोगा के हंसने पर देवीदीन और भी तेज हुआ—तो आपने कहा किस मुंह से था?

दारोगा-कहा तो इसी मुंह से था, लेकिन मुंह हमेशा एक-सा तो नहीं रहता। इसी मुंह से जिसे गाली देता हूं, उसकी इसी मुंह से तारीफ भी करता हूं।

देवीदीन-(तिनककर) यह मूंछे मुड़वा डालिए।

दारोगा-मुझे बड़ी खुशी से मंजूर है। नीयत तो मेरी पहले ही थी; पर शर्म के मारे न मुड़वाता था। अब तुमने दिल मजबूत कर दिया।

देवीदीन-हंसिए मत दारोगाजी, आप हंसते हैं और मेरा खून जला जाता है। मुझे चाहे जेहल ही क्यों न हो जाए, लेकिन मैं कप्तान साहब से जरूर कह दूंगा। हूं तो टके का आदमी पर आपके अकबाले से बड़े अफसरों तक पहुंच है।

दारोगा-अरे, यार तो क्या सचमुच कप्तान साहब से मेरी शिकायत कर दोगे?

देवीदीन ने समझा कि धमकी कारगर हुई। अकड़कर बोला-आप जब किसी की नहीं सुनते, बात कहकर मुकर जाते हैं, तो दूसरे भी अपने-सी करेंगे ही। मेम साहब तो रोज ही दुकान पर आती हैं।

दारोगा-कौन, देवी? अगर तुमने साहब या मेम साहब से मेरी कुछ शिकायत की,तो कसम खाकर कहता हूं, कि घर खुदवाकर फेंक दूंगा।

देवीदीन-जिस दिन मेरा घर खुदेगा, उस दिन यह पगड़ी और चपरास भी न रहेगी,हुजूर।

दारोगा-अच्छा तो मारो हाथ पर हाथ। हमारी तुम्हारी दो-दो चोटें हो जायं, यही सही।

देवीदीन-पछताओगे सरकार, कहे देता हूं पछताओगे।

रमा अब जब्त न कर सका। अब तक वह देवीदीन के बिगड़ने का तमाशा देखने के लिए भीगी बिल्ली बना खड़ा था। कहकहा मारकर बोला-दादा, दारोगाजी तुम्हें चिढ़ा रहे हैं। हम लोगों में ऐसी सलाह हो गई है कि मैं बिना कुछ लिए दिए ही छूजाऊंगा, ऊपर से नौकरी भी मिल जायगी। साहब ने पक्का वादा किया है। मुझे अब यहीं रहना होगा।

देवीदीन ने रास्ता भटके हुए आदमी की भांति कहा-कैसी बात है भैया, क्या कहते हो ! क्या पुलिस वालों के चकमे में आ गए? इसमें कोई न कोई चाल जरूर छिपी होगी।

रमा ने इत्मीनान के साथ कहा-और बात नहीं, एक मुकदमे में शहादत देनी पड़ेगी।

देवीदीन ने संशय से सिर हिलाकर कहा-झूठा मुकदमा होगा?

रमानाथ–नहीं दादा; बिल्कुल सच्चा मामला है। मैंने पहले ही पूछ लिया है।

देवीदीन की शंका शांत न हुई। बोला-मैं इस बारे में और कुछ नहीं कह सकता भैया, जरा सोच-समझकर काम करना। अगर मेरे रुपयों को डरते हो, तो यही समझ लो कि देवीदीन ने अगर रुपयों की परवा की होती, तो आज लखपति होता। इन्हीं हाथों से सौ-सौ रुपये रोज कमाए और सब-के-सब उड़ा दिए हैं। किस मुकदमे में सहादत देनी है? कुछ मालूम हुआ?