पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/१९०

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वह घृणा के योग्य नहीं, दया के योग्य है। देखती नहीं हो, उसका चेहरा कैसा पीला हो गया है,जैसे कोई उसका गला दबाए हुए हो। अपनी मां या बहन को देख ले,तो जरूर रो पड़े। आदमी दिल का बुरा नहीं है। पुलिस ने धमकाकर उसे सीधा किया है। मालूम होता है,एक-एक शब्द उसके हृदय को चीर-चीरकर निकल रहा हो।

ऐनक वाली महिला ने व्यंग किया—जब अपने पांव कांटा चुभता है, तब आह निकलती।

जालपा अब वहां न ठहर सकी। एक-एक बात चिंगारी की तरह उसके दिल पर फफोले डाले देती थी। ऐसा जी चाहता था कि इसी वक्त उठकर कह दे,यह महाशय बिल्कुल झूठ बोल रहे हैं, सरासर झूठ, और इसी वक्त इसका सबूत दे दे। वह इस आवेश को पूरे बल से दबाए हुए थी। उसका मन अपनी कायरता पर उसे धिक्कार रहा था। क्यों वह इसी वक्त सारा वृत्तांत नहीं कह सुनाती। पुलिस उसकी दुश्मन हो जायगी,हो जाय। कुछ तो अदालत को खयाल होगा। कौन जाने, इन गरीबों की जान बच जाय । जनता को तो मालूम हो जायगा कि यह झूठी शहादत है। उसके मुह से एक बार आवाज निकलते-निकलते रह गई। परिणाम के भय ने उसकी जबान पकड़ ली।

आखिर उसने वहां से उठकर चले आने ही में कुशल समझी।

देवीदीन उसे उतरते देखकर बरामदे में चला आया और दया से सने हुए स्वर में बोला-क्या घर चलती हो, बहूजी?

जालपा ने आंसुओं के वेग को रोककर कहा-हां, यहां अब नहीं बैठा जाता।

हाते के बाहर निकलकर देवीदीन ने जालपा को सांत्वना देने के इरादे से कहा-पुलिस ने जिसे एक बार बूटी सुंघा दी,उस पर किसी दूसरी चीज का असर नहीं हो सकता।

जालपा ने घृणा-भाव से कहा-यह सब कायरों के लिए है।

कुछ दूर दोनों चुपचाप चलते रहे। सहसा जालपा ने कहा-क्यों दादा, अब और तो कही अपील न होगी? कैदियों का यह फैसला हो जायगा।

देवीदीन इस प्रश्न का आशय समझ गया। बोला-नहीं,हाईकोर्ट में अपील हो सकती है।

फिर कुछ दूर तक दोनों चुपचाप चलते रहे। जालपा एक वृक्ष की छांह में खड़ी हो गई और बोली-दादा,मेरा जी चाहता है,आज जज साहब से मिलकर सारा हाल कह दूं। शुरू से जो कुछ हुआ,सब कह सुनाऊं। मैं सबूत दे दूंगी,तब तो मानेंगे?

देवीदीन ने आंखें फाड़कर कहा-जज साहब से । जालपा ने उसकी आंखों से आंखें मिलाकर कहा- हां !

देवीदीन ने दुविधा में पड़कर कहा-मैं इस बारे में कुछ नहीं कह सकता, बहूजी । हाकिम का वास्ता। न जाने चित पड़े या पट।

जालपा बोली-क्या पुलिस वालों से यह नहीं कह सकता कि तुम्हारी गवाह बनाया हुआ है?

'कह तो सकता है।'

‘तो आज मैं उससे मिलूं। मिले तो लेता है?'