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20 : प्रेमचंद रचनावली-5
 


की। किस्त बांधकर सब रुपये छ: महीने में अदा कर देने का वादा किया। फिर तीन महीने पर आए; मगर सर्राफ भी एक ही घुटा हुआ आदमी था, उसी वक्त टला, जब दयानाथ ने तीसरे दिन बाकी रकम की चीजें लौटा देने का वादा किया और यह भी उसकी सज्जनता ही थी। वह तीसरा दिन भी आ गया, और अब दयानाथ को अपनी लाज रखने का कोई उपाय न सूझता था। कोई चलता हुआ.आदमी शायद इतना व्यग्र न होता, हीले-हवाले करके महाजन को महीनों टालता रहता; लेकिन दयानाथ इस मामले में अनाड़ी थे।

जागेश्वरी ने आकर कहा–भोजन कब से बना ठंडा हो रहा है। खाकर तब बैठो।

दयानाथ ने इस तरह गर्दन उठाई, मानो सिर पर सैकड़ों मन का बोझ लदा हुआ है। बोले-तुम लोग जाकर खा लो, मुझे भूख नहीं है।

जागेश्वरी-भूख क्यों नहीं है, रात भी तो कुछ नहीं खाया था'इस तरह दाना-पानी छोड़ देने से महाजन के रुपये थोड़े ही अदा हो जाएंगे?

दयानाथ-मैं सोचता हूं, उसे आज क्या जवाब दूंगा? मैं तो यह विवाह करके बुरा फंस गया। बहू कुछ गहने लौटा तो देगी?

जागेश्वरी–बह का हाल तो सुन चुके, फिर भी उससे ऐसी आशा रखते हो। उसकी टेक है कि जब तक चन्द्रहार न बन जायगा, कोई गहना ही न पहनूंगी। सारे गहने संदूक में बंद कर रखे हैं। बस, वही एक बिल्लौरी हार गले में डाले हुए है। बहुएं बहुत देखीं, पर ऐसी बहू न देखीथी। फिर कितना बुरा मालूम होता है कि कल की आई बहू, उससे गहने छीन लिए जाए।

दयानाथ ने चिढ़कर कहा-तुम तो जले पर नमक छिड़कती हो। बुरा मालूम होता है तो लाओ एक हजार निकालकर दे दो, महाजन को दे आऊ, देती हो? बुरा मुझे खुद मालूम होता है, लेकिन उपाय क्या है? गला कैसे छूटेगा?

जागेश्वरी-बेटे का ब्याह किया है कि ठट्ठा है? शादी-ब्याह में क्यो कर्ज लेते हैं, तुमने कोई नई बात नहीं की। खाने-पहनने के लिए कौन कर्ज लेता है। धर्मात्मा बनने का कुछ फल मिलना चाहिए या नहीं? तुम्हारे ही दर्जे पर सत्यदेव हैं, पक्का मकान खड़ा कर दिया, जमींदारी खरीद ली, बेटी के ब्याह में कुछ नहीं तो पांच हजार तो खर्च किए ही होंगे। दयानाथ–जभी दोनों लड़के भी तो चल दिए।

जागेश्वरी-मरना-जीना तो संसार की गति हैं, लेते हैं, वह भी मरते हैं, नहीं लेते, वह भी पर तुम चाहो तो छ: महीने में सब रुपये चुका सकते हो।

दयानाथ ने त्‍योरी चढाकर कहा-जो बात जिंदगी भर नहीं की, वह अब आखिरी वक्त नहीं कर सकता बहू से साफ-साफ कह दो, उससे पर्दा रखने क़ी जरूरत ही क्या हैं, और पर्दा रह ही कै दिन सकता है। आज नहीं तो कल सारा हाल मालूम ही हो जाएगी। बस तीन-चार चीजें लौटा दे तो काम बन जाय। तुम उससे एक बार कहो तो।

जागेश्वरी झुंझलाकर बोली-उससे तुम्हीं कहो, मुझसे तो न कहा जायगा।

सुबह रमानाथ टेनिस-रैकेट लिए बाहर से आया। सफेद टेनिस शर्ट था, सफेद पतलून, कैनवस का जूता, गोरे रंग और सुंदर मुखाकृति पर इस पहनावे ने रईसों की शान पैदा कर दी थी। रूमाल में बेले के गजरे लिए हुए था। उससे सुगंध उड़ रही थी। माता-पिता की आंखें बचाकर वह जीने पर जाना चाहता था, कि जागेश्वरी ने टोका-इन्हीं के तो सब कांटे बोए हुए हैं, इनसे क्यों नहीं सलाह लेते? (रमा से) तुमने नाच-तमाशे में बारह-तेरह सौ रुपये उड़ा दिए,