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202 : प्रेमचंद रचनावली-5
 


बेजा इस्तेमाल किया। जब तक इसका इत्मीनान न हो जाय कि आप उसको जायज इस्तेमाल कर सकते हैं या नहीं, आप उस हक से महरूम रहेंगे।

दारोगा ने इंस्पेक्टर की तरफ देखकर मानो इस व्याख्या की दाद देनी चाही, जो उन्हें सहर्ष मिल गई।

तीनों अफसर रुखसत हो गए और रमा एक सिगार जलाकर इस विकट परिस्थिति पर विचार करने लगा।

छियालीस


एक महीना और निकल गया। मुकदमे के हाईकोर्ट में पेश होने की तिथि नियत हो गई है। रमा के स्वभाव में फिर वही पहले की-सी भीरुता और खुशामद आ गई है। अफसरों के इशारे पर नाचता है। शराब की मात्रा पहले से बढ़ गई है, विलासिता ने मानो पंजे में दबा लिया है। कभी कभी उसके कमरे में एक वेश्या जोहरा भी आ जाती है, जिसका गाना वह बड़े शौक से सुनता है।

एक दिन उसने बड़ी हसरत के साथ जोहरा से कहा-मैं डरता हूं, कहीं तुमसे प्रेम न बढ़ जाय। उसका नतीजा इसके सिवा और क्या होगा कि रो-रोकर जिंदगी काटूं। तुमसे वफा की उम्मीद और क्या हो सकती है। जोहरा दिल में खुश होकर अपनी बड़ी-बड़ी रतनारी आंखों से उसकी ओर ताकती हुई बोली-हां साहब, हम वफा क्या जानें, आखिर वेश्या ही तो ठहरी। बेवफा वेश्या भी कहीं वफादार हो सकती है?

रमा ने आपत्ति करके पूछा-क्या इसमें कोई शक है?

जोहरा-नहीं, जरा भी नहीं। आप लोग हमारे पास मुहब्बत से लबालब भरे दिल लेकर आते हैं, पर हम उसकी जरा भी कद्र नहीं करतीं। यही बात है न?

रमानाथ-बेशक।

जोहरा-मुआफ कीजिएगा, आप मरदों की तरफदारी कर रहे हैं। हक यह है कि वहां आप लोग दिल-बहलाव के लिए जाते हैं, महज गम गलत करने के लिए, महज आनंद उठाने के लिए। जब आपको वफा की तलाश ही नहीं होती, तो वह मिले क्यों कर? लेकिन इतना मैं जानती हूं कि हममें जितनी बेचारियां मरदों की बेवफाई से निरास होकर अपना आराम-चैन खो बैठती हैं, उनका पता अगर दुनिया को चले, तो आंखें खुल जायं। यह हमारी भूल है कि तमाशबीनों से वफा चाहते हैं, चील के घोंसले में मांस ढूंढते हैं, पर प्यासा आदमी अंधे कुएं की तरफ दौड़े, तो मेरे खयाल में उसका कोई कसूर नहीं।

उस दिन रात को चलते वक्त जोहरा ने दारोगा को खुशखबरी दी, आज तो हजरत खूब मजे में आए। खुदा ने चाहा तो दो-चार दिन के बाद बीवी का नाम भी न लें।

दारोगा ने खुश होकर कहा-इसीलिए तो तुम्हें बुलाया था। मजा तो जब है कि बीवी यहां