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216 : प्रेमचंद रचनावली-5
 


उसे कभी न हुआ था। जैसे कोई वीरबाला अपने प्रियतम को समरभूमि की ओर जाते देखकर गर्व से फूली न समाती हो।

चौकीदार ने लपककर दारोगा से कही। वह बेचारे खाना खाकर लेटे ही थे। घबराकर निकले, रमा के पीछे दौड़े और पुकारा–बाबू साहब, जरा सुनिए तो, एक मिनट रुक जाइए, इससे क्या फायदा-कुछ मालूम तो हो, आप कहां जा रहे हैं? आखिर बेचारे एक बार ठोकर खाकर गिर पड़े। रमा ने लौटकर उन्हें उठाया और पूछा-कहीं चोट तो नहीं आई?

दारोगा कोई बात न थी, जरा ठोकर खा गया था। आखिर आप इस वक्त कहां जा रहे हैं? सोचिए तो इसका नतीजा क्या होगा?

रमानाथ-मैं एक घंटे में लौट आऊंगा। जालपा को शायद मुखालिफों ने बहकाया है कि हाईकोर्ट में एक अर्जी दे दे। जरा उसे जाकर समझाऊंगा।

दारोगा—यह आपको कैसे मालूम हुआ?

रमानाथ–जोहरा कहीं सुन आई है।

दारोगा-बड़ी बेवफा औरत है। ऐसी औरत का तो सिर काट लेना चाहिए।

रमानाथ-इसीलिए तो जा रहा हूं। या तो इसी वक्त उसे स्टेशन पर भेजकर आऊंगा, या इस बुरी तरह पेश आऊंगा कि वह भी याद करेगी। ज्यादा बातचीत का मौका नहीं है। रात भर के लिए मुझे इस कैद से आजाद कर दीजिए।

दारोगा-मैं भी चलता हूँ, जरा ठहर जाइए।

रमानाथ-जी नहीं, बिल्कुल मामला बिगड़ जाएगा। मैं अभी आता हूं।

दारोगा लाजवाब हो गए। एक मिनट तक खड़े सोचते रहे, फिर लौट पड़े और जोहरा से बातें करते हुए पुलिस स्टेशन की तरफ चले गए। उधर रमा ने आगे बढ़कर एक तांगा किया और देवीदीन के घर जा पहुँचा। जालपा दिनेश के घर से लौटी थी और बैठी जग्गों और देवीदीन से बातें कर रही थी। वह इन दिनों एक ही वक्त खाना खाया करती थी। इतने में रमा ने नीचे से आवाज दी। देवीदीन उसकी आवाज पहचान गया। बोला–भैया हैं सायत।

जालपा-कह दो, यहां क्या करने आए हैं। वहीं जायें।

देवीदीन-नहीं बेटी, जरा पूछ तो लें, क्या कहते हैं। इस बखत कैसे उन्हें छुट्टी मिली?

जालपा-मुझे समझाने आए होंगे और क्या ! मगर मुंह धो रक्खें।

देवीदीन ने द्वार खोल दिया। रमा ने अंदर आकर कहा-दादा, तुम मुझे यहाँ देखकर इस वक्त ताज्जुब कर रहे होंगे। एक घंटे की छुट्टी लेकर आया हूँ। तुम लोगों से अपने बहुत से अपराधों को क्षमा कराना था। जालपा ऊपर है?

देवीदीन बोला-हां, हैं तो। अभी आई हैं, बैठो, कुछ खाने को लाऊं !

रमानाथ—नहीं, मैं खाना खा चुका हूं। बस, जालपा से दो बातें करना चाहता हूं।

देवीदीन-वह मानेंगी नहीं, नाहक शर्मिंदा होना पड़ेगा। मानने वाली औरत नहीं है।

रमानाथ–मुझसे दो-दो बातें करेंगी या मेरी सूरत ही नहीं देखना चाहती? जरा जाकर पूछ लो।