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कर्मभूमि : 425
 

दो

अमरकान्त के जीवन में एक नया उत्साह चमक उठा है। ऐसा जान पड़ता है कि अपनी यात्रा में वह अब एक घोड़े पर सवार हो गया है। पहले पुराने घोड़े को ऐड और चाबुक लगाने की जरूरत पड़ती थी। यह नया घोड़ा कनौतियां खड़ी किए सरपट भागता चला जाता है। स्वामी आत्मानन्द, काशी, पयाग, गूदड़ सभी से तकरार हो जाती है। इन लोगों के पास पुराने घोड़े हैं। दौड़ में पिछड़ जाते हैं। अमर उनकी मंद गति पर बिगड़ता है-इस तरह तो काम नहीं चलने का, स्वामीजी । आप काम करते हैं कि मजाक करते हैं। इसमें तो कहीं अच्छा था कि आप सेवाश्रम में बने रहते।

आत्मानन्द ने अपने विशाल वक्ष को तानकर कहा-बाबा, मेरे से अब और नहीं दौड़ा जाता। जब लग स्वास्थ्य के नियमों पर ध्यान न देंगे, तो आप बीमार होंगे, आप मरेंगे। मैं नियम बनला सकता हूँ, पालन करना तो उनके ही अधीन है।

अमरकान्त ने सोचा-यह आदमी जितना मोटा हैं, उतनी ही मोटी इसकी अक्ल भी है। खाने को डेढ़ सेर चाहिए, काम करते ज्वर आता है। इन्हें संन्यास लेने से न जाने क्या लाभ हुआ?

उसने आखों में तिरस्कार भरकर कहीं-आपका काम केवल नियम बताना नहीं है, उनसे नियमों का पालन करना भी है। उनमें ऐसी शक्ति डालिए कि वे नियमों का पालन किए बिना रह ही न सके। उनका स्वभाव ही ऐसा ही जाय। मैं आज पिचौरी से निकला, गांव में जगह-जगह कूड़े के ढेर दिखाई दिए। आप कल उसी गांव से हो आए हैं, क्यों कुड़ा साफ नहीं कराया गया? आप खुद फावड़ा लेकर क्यों नहीं पिल पड़े? गेरुवे वस्त्र लेने ही से आप समझते हैं, लोग आपकी शिक्षा को देववाणी समझेंगे?

आत्मानन्द ने सफाई दो-मैं कूड़ा साफ करने लगता, तो सारा दिन पिचौरा में ही लग जाता। मुझे पांच-छ: गांवों का दौरा करना था।

"यह आपको कोरा अनुमान है। मैंने सारा कूड़ा आध घंटे में साफ कर दिया। मेरे फावड़ा हाथ में लेने की देर थी, सारा गांव जमा हो गया और बात-की-बात में सारा गांव झक हो गया।" फिर वह गृदड़ चौधरी की ओर फिरा-तुम भी दादा, अब काम में ढिलाई कर रहे हो। मैंने कल एक पंचायत में लोगों को शराब पीते पकड़ा। सौताड़े की बात है। किसी को मेरे आने की खबर तो थी नहीं, लोग आनंद में बैठे हुए थे और बोतलें सरपंच महोदय के सामने रखी हुई थीं। मुझे देखते ही तुरंत बोतलें उड़ा दी गई और लोग गंभीर बनकर बैठ गए। मैं दिखावा नहीं चाहता, ठोस काम चाहता हूं।

अमर ने अपनी लगन, उत्साह, आत्म-बल और कर्मशीलता से अपने सभी सहयोगियों में सेवा-भाव उत्पन्न कर दिया था और उन पर शासः भी करने लगा था। सभी उसका रोब मानते थे। उसके गुलाम थे।

चौधरी ने बिगड़कर कहा-तुमने कौन गांव बताया, सौताड़ा? मैं आज ही उसके चौधरी को बुलाता है। वही हरखलाल है। जन्म का पियक्कड़। दो दफे सजा काट आया है। मैं आज ही उसे बुलाता हूं।