पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/४९१

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कर्मभूमि : 491 नैना ने उस पद की पूर्ति की-

  • क्यों हमको नीच समझते हो?'

कई हजार गलों ने साथ दिया- 'क्यों हमको नीच समझते हो?' नैना-क्यों अपने सच्चे दास पर? जनता–क्यों अपने सच्चे दासों पर? नैना-इतना अन्याय बरतते हो ! जनता-इतना अन्याय बरतते हो ! उधर म्युनिसिपैलिटी बोर्ड में यही प्रश्न छिड़ा हुआ था। हाफिज हलीम ने टेलीफोन को चोगा मेज पर रखते हुए कहा-डॉक्टर शान्तिकुमार भी गिरफ्तार हो गए। | मि सेन ने निर्दयता से कहा-अब इस आंदोलन की जड़ कट गई। डॉक्टर साहब उसके प्राण थे। | पं० ओंकारनाथ ने चुटकी ली--उस ब्लाक पर अब बंगले न बनेंगे। शगुन कह रहे हैं। सेन बाबू +} अपने लड़के के नाम से उस ब्लाक के एक भाग के खरीददार थे। जल उठे-अगर बोर्ड में अपने पास किए हुए प्रस्तावों पर स्थिर रहने की शक्ति नहीं है, तो उसे इस्तीफा देकर अलग हो जाना चाहिए। मिः शफीक ने, जो यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और ड्रॉ० शान्तिकुमार के मित्र थे, सेन को आड़े हाथों लिया-बोर्ड के फैसले खुदा के फैसले नहीं हैं। उस वक्त बेशक बोर्ड ने उस ब्लाक को छोटे-छोटे प्लाटों में नीलाम करने का फैसला किया था, लेकिन उसका नतीजा क्या हुआ? आप लोगों ने वहां जितना इमारती सामान जमा किया, उसका कहीं पता नहीं है। हजार आदमी से ज्यादा रोज रात को वहीं पाते हैं। मुझे यकीन है कि वहां काम करने के लिए मजदूर भी राजी न होगा। मैं बोर्ड को खबरदार किए देता हूँ कि अ,{ अपनी पालिस बदल न दी, तो शहर पर बहुत बड़ी आफत आ जाएगी। सेठ समरकान्त और शान्तिकुमार का शरीक होना बतला रहा है कि यह तहरोक बच्चों का खेल नहीं है। उसकी जड़ बहुत गहरी पहुंच गई है। और उसे उखाड़ फेंकना अब करीब-करीब गैरमुमकिन है। बोर्ड को अपना फैसला रद्द करनी पडेगा। चाहे अभी करे, या सौ-पचास जनों की नजर लेकर करे। अब तक का तरजवी नो यही कह रहा है कि बोर्ड की सख्तियों का बिल्कुल असर नहीं हुआ, बल्कि उल्टा ही असर हुआ। अब जो हड़ताल होगी, वह इतनी खौफनाक होगी कि उसके ख्याल से रंगटे खड़े होते हैं। बोर्ड अपने सिर पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी ले रहा है। मित हामिदअली कपड़े की मिल के मैनेजर थे। उनकी मिल घाट पर चल रही थी। डरते थे, कहीं लंबी हड़ताल हो गई, तो बधिया ही बैठ जाएगी ये तो बेहद मोटे, मगर बेह, मेहनती। बोले-हक को तस्लीम करने में बोर्ड को क्यों इतना पसोपेश हो रहा है, यह मेरी समझ में नहीं आता। शायद इसलिए कि उसके गरूर को झुकना पड़ेगा। लेकिन हक के सामने झुकना कमजोरी नहीं, मजबूती है। अगर आज इस मसले पर बोर्ड का नया इंतखाब हो, तो मैं दावे से कह सकता हूं कि बोर्ड का यह रिजोल्यूशन हर्फ गलत की तरह मिट जाएगा। बीस-पचीस हजार गरीब 3दिमियों की बेहतरी और भलाई के लिए अगर लोर्ड को दस-बारह लाख का