पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/४९५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
कर्मभूमि:495
 

दोनों उसे उठाने दौड़ी, और वृक्ष के नीचे खड़ी होकर उसे चुप कराने लगीं। | सकीना कल सुबह आई थी; पर अब तक सुखदा और उसमें मामूली शिष्टाचार के सिवा और बात न हुई थी। सकीना उससे बातें करते झेपत थी कि कहीं वह गुप्त प्रसंग न उठ खड़ा हो। और सुखदा इस तरह उससे आंखें चुराती थी, मानो अभी उसकी तपस्या उस कलंक को धोने के लिए काफी नहीं हुई। सकीना की सलाह में जो सहयता भरी हुई थी, उसने सुखदा को पराभूत कर दिया। बोली-हां, विचार तो है। तुम्हारा कोई संदेशा कहना है? सकीना ने आंखों में आंसू भरकर कहा-मैं क्या संदेशा कहूंगी बहूजी? आप इतना ही कह दीजिएगा-नैनादेवी चली गई, पर वे तक सकीना जिंदा है, आप उसे नैना ही समझते हिए। सुखदा ने निर्दय मुस्कान के साथ कहा- उनका तो तुमसे दूसरा रिश्ता हो चुका है। 'सकीना ने जैसे इस वार को काटा-तब उन्हें औरत की जरूरत थी, आज बहन की जरूरत है। सुखदा तीव्र स्वर में बोनी–में तो तब भी जिंदा थी। सकीना ने देखा, जिस अवसर में वह कांपती रहती थी, वह सिर पर आ हीं पहुंचा। अब उसे अपनी सफाई देने के मुिवा और कोई भारी न था। उसने पूछा-मैं कुछ कहूं, बुरा तो न मानिएगा? 'बिल्कुल नहीं। तो सुनिए-तब आपने उन्हें घर से निकान दिया था। आप पूरब जाती थीं, वह पश्चिम जाते थे। अब आप और वह एक दिल हैं, एक जान हैं।जन बातों को उनकी निगाह में सबसे ज्यादा कद्र थी, वह आपने सब पूरी कर दिखाई। वह जो आपको पा जाएं, तो आपके कदमों का बसा ले लें। | मुखदा को इस कथन में वही आनंद आया, जो एक कवि को दूसरे कवि की दाद पाकर आता है, उसके दिल में जो संशय था वह जैसे अप-ही-आप उसके हर ३ से टपक पड़ा-यह तो तुम्हारा ख़याल है सकीना । उनके दिल में क्या है, यह कौन जानता है परदों पर विश्वास करना मैंने छोड़ दिया। अब वह चाहे मेरी कुछ इज्जत करने लगे-इज्जत तो तब भी कम न करते थे, लेकिन तुम्हें वह दिल से निकाल सकते हैं, इसमें मुझे शक है। तुम्हारी शादी मियां सलीम से हो जाएगी, लेकिन दिन में वह तुम्हारी उपासना करते रहेंगे। सकीना की मुद्रा गंभीर हो गई। नहीं, वह भयभीत हो गई। जैसे कोई शत्रु उसे दम देकर उसके गले में फंदा डालने जा रहा हो। उसने मानो गले को बचाकर कहा-लुम उनके साथ फिर अन्याय की रही हो बहनजी । वह उन आदमियों में नहीं हैं, जो दुनिया के डर से कोई काम करे। उन्होंने खुद सलीम से मेरी खत-किताबत करवाई। मैं उनकी मंशा समझ गई। मुझे मालूम हो गया, तुमने अपने रूठे हुए देवता को मना लिया। मैं दिल में कांपी जा रही थी कि मुझ जैसी गंवारिन उन्हें कैसे खुश रख केगी। मेरी हालत उसे कगले की-सी हो रही थी जो खुजाना पाकर बौखला गया हो कि अपनी झोंपड़ी में उसे कहां रखे, कैसे उसकी हिफाजत करे? उनकी यह मंशा समझकर मेरे दिल का बोझ हल्का हो गया। देवता तो पूजा करने की चीज है वह हमारे घर में आ जाय, तो उसे कहां बैठाएं, कहां सुलाएं, क्या खिलाएं? मंद्रि