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कुछ न आई। महाराज, इस बात के सुनते ही करुना कर आँखे भर बसुदेवजी बोले कि बहन, तू मुझे क्या कहती है इसमे मेरा कुछ बस नहीं, कर्म की गति जानी नहीं जाती। हरि इच्छा प्रबल है, देखो कंस के हाथ से मैंने भी क्या क्या दुःख न पाया।

प्रभु अधीन सकल जग आय। कित दुख करौ देख जग भाय॥

महाराज, इतना कह बहन को समझाय बुझाय बसुदेवजी वहॉ गए जहॉ सत्र राजा उग्रसेन की सभा में बैठे थे औ राजा दुर्योधन आदि बड़े बड़े नृप औ पांडव उग्रसेन ही की बड़ाई करते थे कि राजा, तुम बड़भागी हो जो सदा श्रीकृष्णचंद का दरसन पाते हो औ जन्म का पाप गंवाते हो। जिन्हें शिव बिरंच आदि सब देवता खोजते फिरे सो प्रभु तुम्हारी सदा रक्षा करे। जिनका भेद जोगी जती मुनि ऋषि न पावे सो हरि तुम्हारी आज्ञा लेन आवे। जो है सब जग के ईस, वेई तुम्है निबावते हैं सीस।

इतनी कथा कह श्रीशुकदेवजी बोले कि महाराज, ऐसे सब राजा छाय आय राजा उग्रसेन की प्रसंसा करते थे औ वे यथायोग सबका समाधान। इसमें श्रीकृष्ण बलरामजी का आना सुन नंद उपनंद भी सकुटुंब, सब गोपी गोप ग्वाल बाल समेत आन पहुंचे। स्नान दान से सुचित हो नंदजी वहॉ गए जहॉ पुत्र सहित बसुदेव देवकी विराजते थे। इन्हें देखते ही बसुदेवजी उठकर मिले औ दोनो ने परस्पर प्रेम कर ऐसे सुख माना कि जैसे कोई गई बस्तु पाय सुख माने। आगे बसुदेवजी ने नंदरायजी से ब्रज को पिछली सब बात कह सुनाई, जैसे नंदरायजी ने श्रीकृष्ण बलराम जी को पाला था। महाराज, इस बात के सुनतेही नंदरायजी नयनों में नीर भर बासुदेवर्ज का मुख देख रहे। उस काले