(२)
कॉलेज से निकलने के बाद नईम को शासन-विभाग में एक उच्च पद प्राप्त होगया, यद्यपि वह तीसरी श्रेणी में पास हुआ था। कैलास प्रथम श्रेणी में पास हुआ था; किन्तु उसे वर्षों एड़ियाँ रगड़ने, ख़ाक छानने और कुएँ झाँकने पर भी कोई काम न मिला। यहाँ तक कि विवश होकर अपनी कलम का आश्रय लेना पड़ा। उसने एक समाचार-पत्र निकाला। एक ने राज्याधिकार का रास्ता लिया, जिसका लक्ष्य धन था, और दूसरे ने सेवा-मार्ग का सहारा लिया, जिसका परिणाम ख्याति, कष्ट और कभी-कभी कारागार होता है। नईम को उसके दफ़्तर के बाहर कोई न जानता था; किन्तु वह बँगले में रहता, मोटर पर हवा खाता, थिएटर देखता और गरमियों में नैनीताल की सैर करता था। कैलास को सारा संसार जानता था; पर उसके रहने का मकान कच्चा था, सवारी के लिए अपने पाँव थे। बच्चों के लिए दूध भी मुश्किल से मिलता था, साग-भाली में काट-कपट करना पड़ता था। नईम के लिए सबसे बड़े सौभाग्य की बात यह थी, कि उसके केवल एक पुत्र था; पर कैलास के लिए सबसे बड़ी दुर्भाग्य की बात उसकी सन्तान-वृद्धि थी, जो उसे पनपने न देती थी। दोनों मित्रों में पत्र-व्यवहार होता रहता था। कभी-कभी दोनों में मुलाकात भी हो जाती थी। नईम कहता था—यार, तुम्ही मज़े में हो, देश और जाति की कुछ सेवा तो कर रहे हो। यहाँ तो पेट-पूजा के सिवा और किसी काम के न हुए; पर यह पेट-पूजा उसने कई दिनों की कठिन तपस्या से हृदयंगम कर पाई थी, और वह उसके प्रयोग के लिए अवसर ढूँढ़ता रहता था।
कैलास खूब समझता था, कि यह केवल नईम की विनयशीलता है। वह मेरी कुदशा से दुःखी होकर मुझे इस उपाय से सांत्वना देना चाहता है; इसलिये वह अपनी वास्तविक स्थिति को उससे छिपाने का विफल प्रयत्न किया करता था।
विष्णुपुर की रियासत में हाहाकार मचा हुआ था। रियासत का मैनेजर अपने बँगले में, ठीक दोपहर के समय, सैकड़ों आदमियों के