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प्रेम-द्वादशी

जमती हो, वहाँ केसर जमा दें । तीसरे लड़के का नाम गुमान था । वह बड़ा रसिक, साथ ही उद्दण्ड भी था । मुहर्रम में ढोल इतने जोरों से बजाता कि कान के पर्दे फट जाते । मछली फँसाने का बड़ा शौकीन था । बड़ा रँगीला जवान था । खजड़ी बजा बजाकर जब वह मीठे स्वर से खयाल गाता, तो रंग जम जाता। उसे दंगल का ऐसा शौक था, कि कोसों तक धावा मारता ; पर घरवाले कुछ ऐसे शुष्क थे, कि उनके इन व्यसनों से तनिक भी सहानुभूति न रखते थे। पिता और भाइयों ने तो उसे ऊसर खेत समझ रखा था। घुड़की-धमकी, शिक्षा और उपदेश, स्नेह और विनय, किसी का उस पर कुछ भी असर न हुआ । हाँ, भावजे अभी तक उसकी ओर से निराश न हुई थीं ; वे अभी तक उसे कड़वी दवाइयाँ पिलाये जाती थीं ; पर अालस्य वह राज-रोग है, जिसका रोगी कभी नहीं सँभलता। ऐसा कोई बिरला ही दिन जाता होगा, कि बाँके गुमान को भावजों के कटु वाक्य न सुनने पड़ते हों । ये विषैले शर कभी-कभी उसके कठोर हृदय में भी चुभ जाते ; किन्तु यह घाव रात-भर से अधिक न रहता। भोर होते ही थकान के साथ ही यह पीड़ा भी शान्त हो जाती ! तड़का हुआ ; उसने हाथ-मुँह धोया, बंशी उठाई और तालाब की ओर चल खड़ा हुआ । भावजे फूलों की वर्षा किया करतीं, बूढ़े चौधरी पैतरे बदलते रहते, और भाई लोग तीखी निगाह से देखा करते ; पर अपनी धुन का पूरा बाँका गुमान उन लोगों के बीच से इस तरह अकड़ता चला जाता, जैसे कोई मस्त हाथी कुत्तों के बीच से निकल जाता है। उसे सुमार्ग पर लाने के लिए क्या-क्या उपाय नहीं किये गये । बाप समझाता-बेटा, ऐसी राह चलो, जिसमें तुम्हें भी पैसे मिलें, और गृहस्थी का भी निबाह हो । भाइयों के भरोसे कब तक रहोगे ? मैं पका आम हूँ-अाज टपक पडूं या कल । फिर तुम्हारा निबाह कैसे होगा ? भाई बात भी न पूछेगे, भावजों का रंग देख ही रहे हो। तुम्हारे भी लड़के-बाले हैं, उनका भार कैसे संभालोगे ? खेती में जी न लगे, कहो काँस्टिबिली में भरती करा दूं। बाँका गुमान खड़ा-खड़ा यह सब सुनता; लेकिन पत्थर का देवता था—कभी न पसीजता । इन महाशय