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बैंक का दिवाला

करते। उन्हें कभी किसी ने चिंतित नहीं देखा। उनका मुख-मण्डल धैर्य और सच्चे अभिमान से सदैव प्रकाशित रहता है। साहित्य-प्रेम पहले से था। अब बाग़वानी से प्रेम हो गया है। अपने बाग़ में प्रातःकाल से शाम तक पौदों की देख-रेख किया करते हैं और लाल साहब तो पक्के कृषक होते दिखाई देते हैं। अभी नव-दस वर्ष से अधिक अवस्था नहीं है; लेकिन अँधेरे मुँह खेतों में पहुँच जाते हैं। खाने-पीने की भी सुध नहीं रहती।

उनका घोड़ा मौजूद है; परन्तु महीनों उस पर नहीं चढ़ते। उनकी यह धुन देखकर कुँअर साहब प्रसन्न रहते और कहा करते हैं—रियासत के भविष्य की ओर से निश्चिन्त हूँ। लाल साहब कभी इस पाठ को न भूलेंगे। घर में सम्पत्ति होती, तो सुख-भोग, शिकार और दुराचार के सिवा और क्या सूझता! संपत्ति बेचकर हमने परिश्रम और संतोष खरीदा, और यह सौदा बुरा नहीं। सावित्री इतनी संतोषी नहीं। वह कुँअर साहब के रोकने पर भी असामियों से छोटी-मोटी भेंट ले लिया करती है और कुल-प्रथा नहीं तोड़ना चाहती।