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प्रेम-पंचमी

इस तरह पाँँच दिन बीत गए। टामी के पैर लड़खड़ाने लगे, आँखों-तले अँँधेरा छाने लगा। क्षुधा से व्याकुल होकर गिर- गिर पड़ता, पर वह शंका किसी भाँति शांत न होती।

अंत में सातवें दिन अभागा टामी अधिकार-चिंता से ग्रस्त, जर्जर और शिथिल होकर परलोक सिधारा। वन का कोई पशु उसके निकट न गया। किसी ने उसकी चर्चा तक न की; किसी ने उसकी लाश पर आँसू तक न बहाए। कई दिनों तक उस पर गिद्ध और कौए मँडराते रहे; अंत में अस्थि-पंजरों के सिवा और कुछ न रह गया।





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