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प्रेम-पंचमी

काम एक सुव्यवस्थित रूप में आ जायगा, और तब मैं निश्चिंत होकर परीक्षा में बैठूँँगा। पास कर लेना क्या कठिन है। ऐसे बुद्धू पास हो जाते हैं, जो एक सीधा-सा लेख भी नहीं लिख, सकते, तो क्या मैं ही रह जाऊँगा। मानकी ने उनकी ये बातें सुनीं, तो खूब दिल के फफोले फोड़े―‘मैं तो जानती थी कि यह धुन तुम्हे मटियामेट कर देगी। इसीलिये बार-बार रोकती थी, लेकिन तुमने मेरी एक न सुनी। आप तो डूबे ही, मुझे भी ले डूबे।’ उनके पूज्य पिता भी बिगड़े, हितैषियों ने भी समझाया―“अभी इस काम को कुछ दिनों के लिये स्थगित कर दो, कानून में उत्तीर्ण होकर निर्द्वद्व देशोद्धार में प्रवृत्त हो जाना।” लेकिन ईश्वरचंद्र एक बार मैदान में आकर भागना निद्य समझते थे। हाँ, उन्होंने दृढ़ प्रतिज्ञा की कि दूसरे साल परीक्षा के लिये तन मन से तैयारी करूँगा।

अतएव नए वर्ष के पदार्पण करते ही उन्होंने कानून की पुस्तकें संग्रह की, पाठ्य-क्रम निश्चित किया, रोज़नामचा लिखने लगे, और अपने चंचल और बहानेबाज़ चित्त को चारो ओर से जकड़ा, मगर चटपटे पदार्थों का आस्वादन करने के बाद सरल भोजन कब रुचिकर होता है। कानून में वे घातें कहाँ, वह उन्माद कहाँ, वे चोटें कहाँ, वह उत्तेजना कहाँ, वह हलचल कहाँ। बाबू साहब अब नित्य एक खोई हुई दशा में रहते। जब तक अपने इच्छानुकूल काम करते थे, चौबीस घंटों में घंटे-दो घंटे कानून भी देख लिया करते थे। उस नशे