भाषा और लेखन-शैली की शिक्षा के लिये भी कहानी एक अत्यत उपयोगी साधन समझी गई है। उसके द्वारा बालकों को साहित्य प्रायः सभी अंगों की बारीकियों का ज्ञान कराया जा सकता है। एक अच्छी कहानी में नाटक के लिये उपयुक्त कथोप- कथन, उपन्यास के लिये उपयोगी चरित्र-चित्रण, काव्य के उपयुक्त वस्तु वर्णन तथा उत्तम निबध के लिये लाभदायक विचार-विभ्राट् बड़ी आसानी से मिल सकते हैं। उत्तमोत्तम लेखकों की कहानियों के अध्ययन से भाषा के परिमार्जित रूप, उसके लिये आवश्यक ओज:- पूर्ण तथा सनयोचित शब्दावली के संगठन और भाव व्यंजना के अनुरूप लेखन-शैली आदि का पूरा ज्ञान हो सकता है। पाठशालाओं में पढ़नेवाले विद्यार्थियों को भाषा, साहित्य तथा शैली का आवश्यक बोध कराने के लिये तो कहानी से बढ़कर दूसरा साधन ही नहीं। उनके पास बड़े बड़े आचार्यों द्वारा लिखे हुए निबंधों उपन्यासों तथा नाटकों को पढ़ने के लिये समय ही नहीं होता। इसके अतिरिक्त प्रति दिन पढ़ाए जानेवाले श्रेणी-पाठ के लिये बड़े-बड़े नाटक, उपन्यास भी अनुपयुक्त सिद्ध हुए हैं। बालकों में स्थगित कथा-वस्तु के लिये प्रतीक्षा करने का भाव बहुत कम हुमा करता है। वे एक बार में हो, एक साँस में ही, पूरी कथा सुन लेना चाहते हैं। बासी कथानक में उन्हें ज़रा भी, अभिरुचि नहीं रह जाती। अतएव उन्हें छोटी-छोटी स्वतंत्र कथायों द्वारा ही हिंदी-साहित्य की बारीकियों, भाषा सौष्ठव तथा साहित्य के आचार्यों की लेखन-शैली का ज्ञान कराना चाहिए। कहानियाँ ही उनके लिये सर्वोत्तम माध्यम होती हैं। अतएव हमारी सम्मति में हिंदी के आचार्यों द्वारा लिखी हुई छोटा-छोटी कहानियों के संग्रह ही बालकों को भाषा और साहित्य-विषयक शिक्षा के लिये उपयोग में लाने चाहिए, प्रचलित 'प्रोज़-सेलेक्शन' नामधारी भानमती के-से साहित्यिक पिटारे नहीं। उनसे किसी विषय का
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