पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/६८

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प्रकृत और अतिप्रकृत।
 

उन्होंने देवचरित्रको मनुष्यचरित्रके अनुकरणपर वर्णन किया है, इसी कारण उनके पढ़ने सुननेमें पाठकों और श्रोताओंकी सहृदयता बनी रहती है। मनुष्य जैसे राग-द्वेष आदिके वशीभूत हैं, जैसे सुखोंकी अभिलाषा करते हैं, दुःखको अप्रिय समझते हैं, आशाओंपर जैसे लुब्ध रहते हैं, सौन्दर्यपर मुग्ध होते हैं, पश्चात्ताप करते हैं, वैसे ही पूर्व कवियोंके वर्णित मनुष्य- प्रकृति देवता भी हैं। श्रीकृष्णचन्द्र, जगदीश्वरके अंशावतार या पूर्णावतार माने जानेपर भी, मनुष्यकी तरह मनुष्यधर्मावलम्बी हैं। मानव-चरित्रगत ऐसी कोई उत्कृष्ट मनोवृत्ति नहीं है, जिसे भागवतके लेखकने कृष्णचरित्रमें अंकित न किया हो। इस मानुषिक चरित्रके साथ अमानुषिक बल और बुद्धिका संयोग होनेसे चित्रकी मनोहरता और भी बढ़ गई है। क्योंकि कविने उसमें मानुषिक बल-बुद्धिकी सुन्दरताके चरम उत्कर्षकी सृष्टि की है। काव्यमें अतिप्रकृतको स्थान देनेका उद्देश्य और उपकार यही है कि वे प्रकृतके नियम ही कविकी अतिप्रकृत सृष्टिके नियामक होते हैं। ऐसा ही होना उचित भी है।

एक संस्कृतमें और एक अँगरेजीमें ऐसा ही महाकाव्य है कि देवचरित्र और अतिप्रकृतचरित्र उसके आनुषंगिक नहीं, मूल विषय हैं। संस्कृतका काव्य 'कुमारसम्भव' और अँगरेजीका ' Paradise Lost' है। मिल्टनने Paradise Lost में देवप्रकृति ईश्वरविद्रोही शैतानको अनुचरवर्गसहित नायक बनाया है। जगदीश्वरके साथ उसके विरोध और जगदीश्वर तथा उसके अनुचरोंके साथ उसके युद्धका वर्णन है। मिल्टनने किसी भी पक्षको पूर्णरूपसे मनुष्यप्रकृतिविशिष्ट नहीं दिखलाया। अतएव वे काव्यरसकी अति उत्कृष्ट अवतारणामें कृतकार्य होकर भी लोगोंके मनोरंजनमें वैसी सफलता नहीं प्राप्त कर सके ।Paradise Lost अति उत्कृष्ट महाकाव्य होनेपर भी, प्रायः कोई उसे आदिसे अन्ततक नहीं पढ़ता। उसको इस तरह पढ़नेमें जी ऊब उठता है। मिल्टन ऐसे प्रथम श्रेणीके कविकी रचना न होकर अगर यह मध्यम श्रेणीके किसी कविकी रचना होती, तो शायद कोई भी इसे न पढ़ता। इसका कारण यही है कि मनुष्य- चरित्रसे भिन्न देवचरित्रके पढ़नेमें मनुष्यका मन नहीं लगता। इस काव्यमें

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