बगुला के पंख व्यतीत करने लगते हैं। ऐसे ही तरुण चोर, उठाईगीर, गिरहकट, व्यभिचारी, लम्पट और दुर्व्यसनी बन जाते हैं। बहुधा तिकड़म और तोड़-फोड़ के उपद्रव उन्हें पसन्द होते हैं और वे उनके कारण जेल के अनवरत यात्री बन जाते हैं। यों तो कांग्रेस ने जब स्वयंसेवकों का संगठन किया, तभी ऐसी प्रकृति और परिस्थितियों के तरुण उसमें भर्ती हो गए थे। वे बड़ा कड़ा काम करनेवाले, कष्टसहिष्णु और साहसी थे। गांधीजी की नीति में जो जेल जाने की सरल विधियों का- -निरुपद्रव और महाप्रतिष्ठित स्वरूप और विधियों का आविष्कार हुआ और उसके कारण अपनी साहसिक प्रवृत्तियों से प्रेरित होकर ऐसे तरुण जब हज़ारों-लाखों की संख्या में जेलों में भर गए और नेताओं की शह पाकर उन्होंने हद दर्जे की शरारतें, तिकड़म, अव्यवस्था और अनुशासन-भंग की कार्रवाइयां जेलों में की और उसके कारण जो बड़ी-बड़ी जेल-यन्त्रणाएं भुगतीं, उससे इन तरुणों के रक्त और स्वभाव में एक व्यवस्थित गुण्डागर्दी ने घर कर लिया। और जब सन् '४२ में उन्हें खुले रूप में तोड़-फोड़ की छुट्टी मिली तो देश में ऐसी अशान्ति और अव्यवस्था का वातावरण उन्होंने उत्पन्न कर दिया कि अंग्रेज़ सरकार के अनुशासन का दिवाला ही निकल गया और उसे भारत को छोड़कर भागते ही बना। ऐसे तरुण अब बढ़-बढ़कर अपने साहसिक अनुशासन-भंग की डींग गर्व से हांकते थे। उनके सारे ही अनाचार अब देशभक्ति के रंग में शराबोर थे। इसलिए वे न केवल क्षम्य थे, अपितु प्रशंसनीय भी बन गए थे। जैसे धर्म के नाम पर दुनिया भर के अनाचार वैध बन जाते हैं, वैसे ही देश- भक्ति के नाम पर ये अनाचार भी वैध बन गए थे। परन्तु जब कांग्रेस का राज्यारोहण हुआ, उनमें के अवसरवादी और बुद्धि- प्रधान लोग तो ऊंची-नीची कुर्सियों पर बैठकर व्यवस्थित हो गए, परन्तु ये बुद्धिहीन तरुण एकदम असहाय आवारागर्द बन गए। इन्हें न किसी काम-धन्धे की योग्यता थी, न उच्चशिक्षा, न चरित्र का सहारा । गुण्डागर्दी इनके रक्त में मिली थी। जब तक. अंग्रेज़ों की अमलदारी रही, इनकी गुण्डागर्दी देशभक्ति का अंग रही, पर कांग्रेस-राज्य' में वह अपराध बन गई और इस प्रकार वे कांग्रेस के आश्रय से वंचित हो गए। उनमें अब बहुत-से तो छोटे-मोटे धन्धों में अपने अत्यन्त असफल अनैतिक जीवन को बड़े ही असन्तुष्ट रहकर काट रहे थे। बहुत-से कांग्रेस-विद्रोही होकर लाल झण्डे के नीचे फिर वही अपना पुराना
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