बगुला के पंख उसके मुकाबिले में खड़ा नहीं हो सकता।' 'खाक काम सरते हैं । आप भी क्या बीती बातें करते हैं जीजाजी ! आप जव मिनिस्टर बन जाएंगे तो ऐसे-ऐसे पचास मुंशी आपको सलाम झुकाएंगे और हाज़िरी बजाएंगे।' 'मिनिस्टर वनना खालाजी का घर नहीं है जोगीराम । भला मेरी क्या औकात !' 'उस मुंशी के बच्चे ही की क्या औकात है भला !' 'उसकी पीठ पर तो कांग्रेस है, राज ही कांग्रेस का है।' 'तो आपकी पीठ पर जनसंघ है। राज अब कांग्रेस का टिकेगा नहीं। जनसंघ ही का अब बोलबाला रहेगा।' लाला फकीरचन्द सोच में पड़ गए। कुछ सोच-समझकर बोले, 'भला खर्च कितना हो जाएगा इस काम में जोगीराम ?' 'आप भी क्या सवाल करते हैं जीजाजी ! यह भी क्या हिसाब-किताब लगाने की बात है ! अजी पालियामैंट में घुसना नेहरू चाचा की नाक पर बैठना है। तुम एक बार वहां घुसो तो सही, फिर बिना मिनिस्टर बनाए हम दम थोड़े ही लेंगे।' 'खैर, देखा जाएगा। मैं सोच-विचारकर कल जवाब दूंगा।' 'मैं जवाव लेने नहीं आया हूं लालाजी, यह कहने आया हूं-आज शाम को हम जलसा कर रहे हैं मुहल्ले में जनसंघ का ! उसमें हम आपको उम्मीदवार खड़ा करेंगे । आपको आकर भाषण देना होगा।' 'ना भई, भाषण-ऊषण देना मेरे बस का नहीं है।' 'जीजाजी, जब अोखली में सिर दिया तो मूसलों का क्या डर ।' 'अरे तो लियाकत भी तो चाहिए !' 'अजी, पत्थर पर सिन्दूर मलकर उसे देवता बनाया जाता है। सब लोग उसे ही पूजते हैं । चलती का नाम गाड़ी है।' ‘पर भाषण तो लीडर लोग दिया करते हैं जोगीराम ।' 'लीडर की दुम में क्या सुरखाव का पर होता है। आप जब पार्लियामैंट के एम० पी० और मिनिस्टर बनेंगे तो लीडर आप बने-बनाए हैं।' 'तू तो मेरी भद्द उड़ाने पर तुला बैठा है जोगीराम !' ब-११
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