पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/१९३

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बगुला के पंख १९१ परन्तु विद्यासागर भी एक ही टेढ़ी खोपड़ी का आदमी था । वह बहुत कम वोलता था । पर मार उसकी बड़े गज़ब की होती थी। सबसे बड़ी बात यह थी कि वह पूरा फक्कड़ आदमी था, और लोभ, लालच, भय, धमकी उसपर कुछ भी असर नहीं करती थी। सभी कांग्रेसी यह बात जानते थे और उसपर विश्वास करते थे। जेल में जाकर उसने जेल अधिकारियों के नाक में दम कर दिया था। यहां कांग्रेस के बड़े से बड़े अधिकारी को वह डांट देता था। जुगनू भी उससे दबता था । जुगनू के कुछ दोष उसपर प्रकट थे, परन्तु उसे कांग्रेस ने खड़ा किया था, यह कांग्रेस की नीति थी, अतः वह अन्धभक्ति से उसका समर्थन कर रहा था । जुगनू उसकी बहुत खातिर भी करता था। इसके अतिरिक्त विद्यासागर को जुगनू की पोल का भी पता न था। वह उसे विद्वान और कर्मठ कांग्रेसमैन समझता था। शोभाराम पर उसकी श्रद्धा थी, और जुगनू शोभाराम का आदमी था, एक बात यह भी थी । एक दिन भोर ही विद्यासागर लाला फकीरचन्द की कोठी पर जा पहुंचा। लाला फकीरचन्द अभी सोकर ही उठे थे पर उन्होंने बड़ी आवभगत की विद्यासागर की। विद्यासागर की कीमत वे जान गए थे; जिसने बात की बात में लाखों के मुनाफे के परमिट ला दिए थे। पर.विद्यासागर ने ज़रा नरमाई से कहा, 'लालाजी, मैं तो आपसे ज़रा मतलब की बात करने आया हूं। आप अपनी जात-बिरादरी और मुहल्ले के लोगों को अपने काबू में रखिए । जोगीराम उन्हें आपके विरुद्ध भड़का रहे हैं।' 'खूब याद दिलाई आपने । बिरादरी के चौधरी हैं लाला दीवानचन्द, अपने ही आदमी हैं। कारोबार भी हमारा है उनके साथ । मैं उन्हें पकड़ता हूं-वे काम बना देंगे।' 'तो और बाहर से तो मैं निबट लूंगा । आप अभी चले जाएं लाला दीवानचन्द के पास ।' 'बहुत अच्छा, लेकिन आप तो चल ही दिए । कुछ जलपान नहीं कीजिएगा?' 'नहीं और मुझे बहुत काम है।' विद्यासागर के चले जाने पर लाला फकीरचंद ने मन ही मन कहा, 'आदमी हीरा है। पर है जरा बेढब।' इसके बाद वे जल्दी-जल्दी आवश्यक कृत्यों से निबटकर लाला दीवानचंद के पास पहुंचे। लाला दीवानचंद पुराने ज़माने के खुशदिल आदमी थे। तबियत के चौधरी।